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(1)
चरनन ही लागि रहूँगो, प्यारे साहिब चरनन ही लागि रहुँगो । ( टेक )
जीमन मरन को दुख मोय भारी, मैं मिलत ही तोहि लहु हो।
मेरे मन निसदिन यह उपजत है, तोहि हमें सलहू हो।
त्यारे ही कारन लई है फकीरी है, मैं बिरह के बान सु हो।
न्योधा प्रेमा परा भगाति है, किरपा सुलह ही लहु हो।
प्रेमा उमगे परा भगति है, गुरू से अमिट रहूँ हो।
नित्यानंद जी कूं तिरखा त्यारी, दरस का प्रेम पीउ हो।।

(2)
मौज दरस की मैं पाऊँ, प्यारे साहिब मौज दरस की मैं पाऊँ हो। (टेक)…
हाजुरि रहूँ मैं हुकुम के चाकर, अंच्छा करि मैं धाऊ।
ज्यों मच्छी दरिया में लहे, सुरति रहै तुम मांहि।
तुम्हारी सू दिल भयौं रोशन, गुने बाद नित गाऊँ।
महर भई गुरू दरसन दोयो, चरनन ही लिपट जाऊँ।
नितानंद जी के सिर पै साहिब और कहा कछु चाहु।।

(3)
-साखी-
हेत फड़े मोरा भाईड़ा, जो कोई भावे हेत।
मनसा मोती निपजै, बाई तोला के दर खेत॥
तोला ने तियारे तीन जन, जैसल साध सनेह।
विनज करता वाणिया घोड़ा सेती जीन॥
सबद्‌
वेलीडा गुण वेलीडा, बाबा धुर बेलो मत छोडे हो वीरा।
वेलो पहुचयो मोरा भाईंडा, या धुर अमरापुर जासी हो वीरा। ॥
आपे लड़े पति कारणे, ये सेला ये इंगला लीजे मर्दों। टेक
मोठे लडे रे बाबो बावणी, ये तो निश्फल कबहू न जासी हो वीरा
एक जुगारी बावडी, ये तो चारो जुगारी खासी हो बीरा। 2
जो धन होय बाई तोला के, ये तो खर्चा कबहू न होसी हो वीरा।
सबद दीयो मोरा साहिब, या मुख से कबहु न छुटे हो वीरा। 3
तोला कहे मोरा भाईडा, तुम पर निंदा ना कीजै हो वीरा।
परनिंदा ने छाड़ो जी, तुम हूजो पर उपगारी हो वीरा। 4

(4)
साखी
साख सही सतनाम की, जासे तिरे अनंत।
और सकल बकवास है, यही जानिये तंत॥
सबद्‌
कुबुधि कू मारि शबद घर बैठो, तो जब सोई साध कहावेगो। ( टेक )
पाचोई बाटा पांच अपरबल, हुकम पकरि भगावेगो।
इमान की टेक बांध असुर जिरावे, तो अधर सिंहासन पावेगो ॥
विष की नदिया बहे अपरबल, बंदा कोई तिर आवेगो।
सत को नाव धरम को बेड़ो, तो कोई मति की ठंडी लगावेगो ॥
अहू पलिता अति पनिजरी हे, कोई इमली छिरम बुआवेगो।
निर्मल नीर निर्मला बहे तो, कोई-कोई साथ नहावेगो ॥
जैसे मुरई बसे समुन्दर में, कोई मोती चुन-चुन लावेगो।
भगति पदार्थ चारयो खूंटी, कोई जुगति की जोर लगावेगो ॥
हस्तनापुर की पैठ लगत है, तो कोई-कोई नफा कमावेगो।
हीरा से व्योहारि वीरा, कोई कोड़ी काड लगावेगो ॥
साध संगत में हिलमिल रहिये, कोई सांचो बचन सुनावेगो।
कहे जी सबलदास इतनी सी साधो, तो अमरापुर कू पावेगों ॥

(5)
साखी
सत मत छोड़े सूरमा, सत छोड़े पति जाय,
सत की बान्दी लक्ष्मी, फिर मिलेगी आय।
सत राजा हरिशचंद्र साधिये, तप तारावती नार,
कमर बाधि चौकी लईं, घर-घर के पनिहार ॥

सबद
सतनाम अखंडी धार जहाँ लौ लागी रे। (टेक )
माया को फंदन फसो फस्यौ बहुभांति रे।
जामें कछु न होत उपाय भ्रमत दिन राती रे।
काम, क्रोध, मद, लोभ, की झर बाँकी रे।
जामे बह गये पथिक अनेक खबर नाहीं ताकी रे।
अंकुस दे दे रे अरे मन हस्ती है रे।
गुरू ज्ञान की पाखर डारि मिलेंगे अविनाशी रे।
साध संगत मिल बैठ रच्यो मत सांचो रे।
यामें सतगुरू भये दयाल काटिगे यम फांसी रे।
गरजे गगन आनन्द प्रेम धुनि लागी रे।
जल पीवत जन हरि दास तल्पना भागी रे।

(6)
धनि जा पर तुम कृपा करो, जब कोह दुरजन गाजे जी। ( ] )
धरनि धरी आकाश रचायो, अधर शबद सू थरप्या जी।(3)
अंच्छा सेती चेला कीयो, अहू असुर सू वनयो जी। (4)
सांचे साहुकार नेतसी, कोई खोटो बनज न बनजे जी। (5)
तुमरी सरवर को कहें, तुम सुमेर नखपर थम्या जी। (6)
बंदो लेखों लेसी, पापी का जी कांप्या जी। (7)
दुल्ली साथ महरि सू वोल्यो, सतगुरू हित सू थम्या जी। (8)

(7)
गाजिन सके कोई जापे त्यारी किरपा है।
परमारथ के कारने कई ख्याल करता है। (1)
रूप मनुष्य कौ धारि, नो खण्ड फिरता है। (2)
जिनके हे विश्वास, सोई साधु तिरता है। (3)
बानी बोल्यो है भूपति साध, सबल जू की सरना है। (4)

(8)
धनी तुम हो गरीब नवाज, सांचो त्यारो विरध सही। टेक
परमारथ के कारणे, सतगुरु देह धरी। |
जग दरवाउ अथाह, बन्दा की आय वाह गही। 2
नितसी जी नहंकलक आयो, भरम की भीति ढई। 3
नौठ राज नई रेहेनी, नौ खण्ड तमाम लही। 4.
वाणी बोल्यो छे भोपति साध, सादों ने तिहारी सरनि लई। 5

(9)
साधु भाई फलसी हेत अन्दर का, साधो भाई भाई फलसी हेत अन्दर का। टेक
नाम निसान घुड़े नट नाचे तो, देख्यो है लोग शहर का। |
साँचो ही साहिब सांची ही संगति, सांचो ही ख्याल वाके घर का।
बाजीगर बाजी सू खेलो, तो अचरज है बाजीगर का। 3
नामदेव पत्थर दूध पिलायो, तो बासी कुन्दनपुर का। 4 |
चिंगावत बाई ने हित कर जोहियो, तो कोख विरध दियो लरिका। 5
दुर्योधन की मेवा त्यागी, पायो साग विदुर का। 6 |
दास कबीर जी कूं ऊपर कीयो, पायो न पार बाके घर का। 7 |
भोपति साध सबलजू की सरना, जो चाकर हूं सतगुरु का। 8

(10)
ढील नांहि मेरे प्यारे, अब कछुऊ ढ़ील नाय मेरे प्यारे।
अभी जु बरकत होत सदा री, ईमरत के पन न्यारे।
सादन के घर सत्य सबुरी, मत उनके न्यारे न्यारे।
सबक दिल की तुम ही जानों, तुम दिल मालिक हमारे।
मनी मंगज कु खोजू वहाँ, सन्तन के कारज समारे।
कायम कुंवर जी की सुनो विनती, तुम प्रतिपाल हमारे।

(11)
लागि रही पिया मेरे, अबधुनि लागि रही पिया मेरे। ( टेक )
काया नगर में नोहोबत बाजे, लियो परम गुर डेरा।
कहबत-सुनबत कू बहतेरो, अब दिल पेस किया पिया मेरा।
लाज कहाँ जब कारज समारे, ऊपर कीयो सबेरा।
सखी पिया सु चरपट किया, रूम रूम सुख मेरा।
उग्यो भानु टिमर सब नास्यो, रंग रंग बाज्यो हे तूरा।
कायम कुवंर जी की सुनो विनती, पार लगायो चेरा॥

(12)
मैं मसतानी मेरो साहिब दिमानो। ( टेक )
जित देखु जित चाहो तेरा, तेरी सुरति पै खुरमानी खुरमानी रें।
पिया हमारो मिलो है पुरातम, सुरति सुहागल जानी मैंने जानी रे।
हाजिर रहूं हुकुम के चाकर जी, अबगत के मनमानी मनमानी रे।
हमारे गुरू ने ईमरत दियो जी, पीके हो गई मस्त दिबानी-दिबानी रे।
कायम कूुवंर जी की सुनो विनती जी, भाव भगति मनंमानी मनमानी रे।

(13)
एक हमने देख्या अचरज भारी। (टेक)
ऐक पलिता ऐसा भबक्‍या जी, जांसू जल गये कर्म बिकारी।
ऐक पुरुष अजबेंगी आयौ, जिन पकरी सुरति बिचारी॥।
या झर में दोही ठहरावे, एक पुरुष एक नारी।
इन मिलि दोनों शहर बसाया, नगर बसाया ऐक सारी।।
या नगरी को गढ़पति मोहकम जी, और ढूंकन चोर लगाई।
जहाँ चोर जहाँ चुनि चुनि मारे, ऐसे खूब शिकारी।।
या नगरी को नीर जो मीठो, और अजब भरे पनिहारी।
कुआँ उमडि ढाह ने लाग्यौ, ऐसी जुगति संभारी॥
नितानंद बाबा पीबन लाग्या, और जुगति बनी अधिकारी।
बिन ने गुरूगहि अमरत्‌ गहरा पीया, लागि है खूब करारी॥

(14)
एक हमने देख्या अजब तमासा, जाय देख देख आबै मोही हाँसा। (टेक)
धरती उमंगी अम्बर भीज्या, गरजति गगन परगासा।
अंदर बैठ हुआ गलताना, सुखों बाहरी बासा।
एक बालक हम ऐसा दरसा, जाकों धरनि गगनि लग बासा।
अनहद नांद बाकै संग बाजै, गरजत गहरौ तासा॥
एक मच्छी जिन मच्छा जायो, और बाही सू कियो घर बासा।
अड़षट नौ निधि बाके घट माहीं, मुकति करें आसा।।
जो या सबदे खोजे और बूझे, बाही दास को मैं दासा।
दरसन किये ते दुख नासत है, ऐसा सास उसासा॥
नितानंद हे बड़े भागी, देखा उनके पास खबासा। |
इत उत कबहू न होनन पाबै; लागि रहे चरन निबासा।।

(15)
जहाँ सु तू आया, सोई घर खोजो, खोज बुझ चलना है।
कहाँ तू आया, यहाँ ही समाया आखिर यह जग गलना है।
लख चोरासी में भरमत डोलें, एक टांक से तुलना हे।
कर्म देह सूं लाग रहयो हे, आखिर इन सूं ढलना है।
वहाँ तो बहुत कठिन घर ऊँचों, नांहीं हाँसी खेलना है।
मान मगज कौ काम नहीं है, और जंतीरी माहिं निकरना है।
बुद्धि अचल रहे चलन न पाबे, घटत बढ़त कोई तिल ना है।
नितानंद जी में कुदरत बोली, उनके गुन सू मिलना है।
अब तो चेत चितानंद प्यारे, अविनाशी से मिलना है।

(16)
आज रे आनंद हमारे सतगुरु आये आंगना (टेक)
हरे हरे हरे हरे गोवर मगायो, आगनियां लिपावना।
आगनियां के आरे ढोरे, मुतियन चौक पुरावना।।
सरऊ गऊंन को दूध मंगायौ, उज्जवल खीर पकावना।
खीर खाडरौ अमृत भोजन, सतगुरु नौत जिमावना॥ 2
जमुना जी के ईरे तीरे, कपिला गऊ चरावना।
मीरा जी को सतगुरु मिल गये बंशी के बजांवना॥। हर

(17)
गुरुदेव हमारे घर आओ जी। (टेक)
पलकन पंथ बुहारू तिहारों, नैनन परंपग धारो जी। 1
बहुत दिनन से लग्यो उमावो, आनंद मंगल गाओ जी। 2
तन मन सेती करूं आरती, बार बार बलि जाओ जी। 3.
दे परिकम्मा शीश नवाऊँ, सुन सुन वचन अघायो जी। 4.
चरणदास सुकदेव दया से, दरसन मांहि समाओ जी। 5

(18)
सतगुरू ने मोहे दीनी अजब जड़ी ॥ टेक ॥
सोई जड़ी मोही प्यारी लगत है अमृत रसन भरी ॥
काया नगर अजब एक बंगला तामें गुप्त धरी ॥
पांच नाग पच्चीसो नागिनी सुघत तुरत मरी ॥
या कारे ने सब जग खायो सदगुरू देख डरी ॥
कहत “कबीर’ सुनो भाई साधो ले परिवार तिरी ॥

(19)
सोते सोते दाता क्‍या सोवे, सोते आवे नींद।
जम हो सिराने दाता यो खडो, तोरण उमो है वींद। ।
आस बड़ी सतनाम की, जागे भरपूर जोगी।
अलख से आप पधारिये, स्वामी रचना रौ जोगी।। टेक
गुरु बिन मूरख रह गयो, अये निगुरा रह गयो॥
दीपक जलता देखिये, विन वाती विन तेल।
अखंड उजाला दाता है रहयो, देखो करतारौ खेल।। 2
पग हो वधावे स्वामी घूंघरा, हाथ देय देय ताल।
वाच पखावत प्रेम की, सत के गुन गाय।। 3
सरद मुनि आसन दिया, मोया जुग संसार।
तीन लोक दस ओफदा, चौथा सिरजन हार। 4
जा घट नौवत नाम की, जा घट छानी नाय।
जति हों गोरख जोगी वोलिये, हृदय उपजौ है ग्यान।। 5

(20)
सत्य शब्द से वांचिये, लीजे इतवारा।
सत्य शब्द अच्छो विरछ है, निरंजन डारा। (टेक)
विरमा ने वेद सही कियो, शिव ने जोग पसारा।
विशनु भगत वो तो उत्पन है, ये उरले व्यौहारा।। ॥
ये तीनो कीड़ा भया, पीयो विष का प्याला।
मोह की फांसी डार के, बांध्यो
गुरु सागर ओंडा घरणा, जाकी ऊंची नीची पार।
कूद पड़ा सो नर उवरा, गाफिल खासी है मार॥ 3
अमल जो मेटू मैं दास को, पट होय भौ पारा।
कहें जी कबीर अमर भयो , जो जान होय हमारा 4

(21)
धोला रे धोवी मंजल जल धारा, उज्जल निर्मल घाट हमारा। (टेक )
फटे नही चीर टूटे नही तागा, सहज ही सहज धोवी धोय विचारा।
सत को है नीर शब्द को है तख्ता, सत ही का साबुन लगा लारे मुक्ता। 2
उलटा सुलटा नीर वहावे, सो धोवी जगदीश कहावे।3
गंगा यमुना सुरत चढ़ावे, सो धोवी मेरे मन भावे। 4
कहें जी कबीर धोवी धोय विचारा, जो धोवे सो जग से न्यारा। 5

(22)
धन्य गुरु तेरा दरसन पाया, खुल गया धरम दुवार हो (टेक )
गोरख जोगी नाद वजाया, मेलो भरयो अपार। 1
कई आया कई आमता, और कई भये तैयार। 2
कई बंकावत कई टेढावत, केई छरी बलदार। 3
कई पढनता कई लिखन्ता, आय लीजो सरकार। 4
विरमा विष्णु महादेव शक्ती, रामकिशन औतार। 5
विन्द बीदनी तखत बैठीयो, प्रगट भयो औतार। 6
भोपति साद सवल जूं की सरना, सतगुरु के ऐतवार। 7

(23)
मोक्ष लिया जोगी फिरे, काया नगर मझार। (टेक)
जोगी पांच पच्चीस तेरे जोगिनी, इन्हें जोग जुगत से रांच। मोक्ष। …1
जोगी गुदड़ी सिवाले गुरू ग्यान की, जामें सत ही का तागा डार। मोक्ष—2
जोगी प्रेम पखावत वांच ले, लीजे अलख पुरुष को रिझाय। | मोक्ष—3
जोगी गगन मंडल मडिया मही, जामे संत करें विश्राम। मोक्ष—4
ऐसे दास “कबीर” जोगी बने, ढ़ाडे अलख पुरुष दरवार। मोक्ष—5

(24)
गुरु सुमरत सार बाता, भाई सुमरत सार बाता (टेक)
सबके दिल की तुम ही जानो, दिल भीतर गम खाता। |
धरती अम्बर दोनो थरपे, उस दिन को है लेख लिखन्ता। 2 |
धरती अम्बर दोनो कापे, उस दिन साद सतमता। 3
पहलाद उवार हिरनाकुश मारयो, सतगुरु अपने हाथा। 4
ईमरत को दरियाव बना है, निर्मल हुआ नहाता। 5
सांतो संमद्‌ पलक मे पाटयो, धार धार गिरवर बहता। 6
सीता की बंदी छुडाई, छुटन लागी बारा। 7
कहै भोपति इतवारी इतनो, नौ बारह पांचों साता। 8

(25)
जोई जोई संगत कीजिये, मन मिलता से मिलिये।
संसय घड़ा धरना नही, वासे न्यारौ ही रहिये,
वासे अलग ही रहिये। (टेक)
कच कच सूत जो तागला, तागो तोडे ही टूटे।
ओछा जल का नाडिया, महिना पहले ही सूखे। ।
काडी ऊन कुवाड चा, रंग दूजो न लागे।
सो मन मजत गुडाईये, रंग त्योऊ न लागे। 2
आला से जैसल ऊजड़ा, रंग देख तरुरा।
औरन मारग दाखला, अपनी करणी में धूला। 3
कांटा केलारौ संग नही, काटो केला न खावे।
मूरख कूं समझावता, पंत गांठया ई जावें॥ 4
वोदी ये वाडु फिरासरी, विन छेड़ाई सीजे।
भाटी ऊंगमसी बोलियें, कछ सुकरत कीजे।। 5

(26)
सबल गुरू बैठे होए सरे, कोई सांचे साहिब बैठे होए सरे | (टेक)
मीर पीर सब मेलो मिलसी, मेलो कू सबल भरे। (1)
तीन भवन रो राजा आया, नौ खंड ऊपर अमल करे। (2)
झूठ सांच को लेखो लेसी, कोई सांचो न्याय करे। (3)
हस्थी मार गरद में मिलावे, तिनहा पै छत्तर धरे। (4)
सबलदास तुम गुरू हो साहिब, भूपति अरज करे। (5)

(27)
आये कायम कुंवर खिलाड़ी जी।
युग-युग सतगुरू देह धर आये, कर आये कोल करारी जी।
सुद बुद सूरत सावरो लाये, सामला लाये ये तो सारी जी।
पहली नाव पल मांही उतारी, अबकी नाव क्‍यों भारी जी।
हुकम करो जी नाव पार उतरे, तुम जुग-जुग के उपगारी जी।
धकर-पकर की कछु न जानू, तुम अवगत्‌ आप भंडारी जी।
कहे दुलीप कायम कृपा कीजे, सब संगत शरण तुम्हारी जी।

(28)
गुरू पैया लागूं शब्द लखाय जइयो। ( टेक)
जन्म-जन्म को सौबत मनुआ ज्ञान की ज्योति जला जइयो ॥
घर में धरी वस्तु नहीं सूझे नैनन को टिमर बढ़ाइ जइयो।
विष को लहर उठे घट भीतर अमृत की बूंद चुबा जइयो ॥
नदिया गहरी नाव झोझरी खेवटिया पार लगाय जइयो।
धर्मदास जी की अरज गुजारौ जीवन को फंद छुडा जइयो ॥

(29)
साद की संगत पाई हो।
जाकी सफल कमाई जाकी पूर्ण कमाई ॥
सबरे फलन में कड॒ई तुमरिया तो रही भूड में छाई हो।
जब तब हाथ पड़ी है साधन के तो अड़सठ तीरथ नहाई हो ॥
गंगा जमुना को नीर निरमला, निर्मल है के नहाई हो।
खीर खांड और अमृत भोजन, जल झाड़ी भर लाई हो ॥
सत की भक्ति, साद की संगत निरफल कबहू न जाई हो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, गुरू के चरण चित्त लाई हो ॥।

(30)
अटपट अगिम चढ़ाई हो। |
कैसे जाऊँगी महल में कैसे पहुंचगी महल में ॥
आठ घाट या के दस दरवाजे, सात सीढ़ी सोलह खाई हो।
पांच पवन या है रोकत टोकत, उन्हीं से दाव बचाई हो ।।
मुद्रा पांच बांध घट भीतर, सुकमज सेज बिछाई हो।
दास कबीर गगन चढं दरसी ये छवि नैनन छाई हो ।

(31)
माया को रंग बादरो, जामै चंदा हूं दरसत नाहि ॥
काम क्रोध के बादरा रे, घटा उठी घन घोर।
लोभ मोह की वर्षा बरसे, भीग रहो है संसार ॥
या माया ने घेर-घेर के लूट लियो संसार।
दांत उखड गये मुंह बिगड गयो संतन के निकट न जाय ॥
पांच पच्चीस की धमक चांदनी उन घर बरसो आय।
बड़े-बड़े ऋषि मुनि बह गये रे या माया के मझदार ।
ज्ञान पवन सरसर चले रे बदरा दिये उड़ाय।
कहते कबीर सुनो भाई साधो चन्दा हूँ दिये दरसाय।।

(32)
मालिक से हेत लगाय, माया में कैसे भरम रहो रे ॥
झूठी है माया झूठी है काया, तो झूठो बनो हे संसार। या में तो कोई थिर न रहो रे ॥
यह संसार अगिम जल गहरो किस विधि उतरोगे पार।
यामें तो जग जाय बहयो रे ॥
नर तैने देह भजन बिन खोई, फिर क्‍या करोगे उपाय। जम जब आय गयो रे ॥
आ मेरे मनुआ चौपड़ खेले, तो बाजी रची है करतार। जैसे तो जाको दाव लग्यो रे ॥
सुरजन साद शरण सतगुरू की, तो विमल-विमल यश गाय। अब के तो मेरो दाव लग्यो रे ॥

(33)
निर्गुण की चर्चा है मूर्ख समझे उल्टा जाल ॥
अंम्बर में एक बड़ का पौधा, झूम रहा निर्गुण का लड़का।
इसका अर्थ बता दे खुटका गावें है बेताल ॥
निरंकार को किसने जाया, शंकर किसने गोद खिलाया।
किसकी पुत्री कहिये माया, किसका पुत्र है काल ॥
पांच तत्व बिन भवन कौन है, अग्नि पवन जल धर्म कौन है।
इन पांचों का पिता कौन है, कहदे इसका हाल ॥
जिय तेरे की नहिं खबर जरा सी गुरू अपने से करौ तलासी।
शंकर दास के मारे गासी कोई समझें हरि का लाल ॥

(34)
मेरे सतगुरू दई है बताय दलाली कर लेउ लालन की ।
लाल परयौ मैदान में रे रहयौ खाक लिपटाय ।॥
मूरख ठोकर दै गये संतन लियौ है उठाय । |
लाल लाल सबहीं कहें रे सबकी गाँठ में लाल॥
खोल गांठि परख्यौ नहीं रे या ही ते रहयो कंगाल ॥
सतगुरु ऐसा चाहिए, ज्यों पथरी में आग ।
जो चाहे दीदार कू चित चंकमक है जाय ॥ |
सतगुरु ऐसौ सूरमा-लडै शब्द की ओट । ।
गोला मारै ज्ञान को रे, दिये भरम सब खोय॥
मोती उपजे सीप में सीप समुन्दर मांहि।
कोई एक साध ला सके न, कायर की गति नाहि ॥
लाल लाल सबही कहे लाली लखे न कोय।
दास कबीर लखे लाली को जग से न्यारा होय ॥

(35)
मेरे सतगुरू है रंग रेज चुंदरिया मेरी रंगडारी (टेक)
स्थाहीं रंग छुडाय के रे दियौ मजीठा रंग।
धोये से छूटे नहीं रे, दिन-दिन होय सुरंग ॥
भाव के कुंड, नेह के जल में प्रेम रंग दई बोर ।
सत की आँच जलाय के रे खूब रंगी झक झोर ।॥
सतगुरू ने चुनरी रंगी रे ऐसे चतुर सुजान ।
सब कुछ उन पर वारि दऊ रे तन मन धन और प्राण ॥
कहत कबीर रंगरेज गुरूजी हम पर भये दयाल ।
शीतल चुनरी ओढ के रे है गई परम निहाल ।।

(36 )
हमसे कोन बड़ो परिवारी । – टेक ।
सत से पिता धर्म से भ्राता लज्जा सी महतारी ॥
शील बहिन संतोष पुत्र है क्षमा हमारी नारी ।
आशा शाली, तृष्णा सासुल, लोभ-मोह सुसराली ॥ |
अहंकार से ससुर हमारे वे सबके अधिकारी ।
दिल दीवान सुरति है राजा बुद्धि मंत्री है न्यारी ॥ |
काम क्रोध दो चोर बसत है उनको डर मोय भारी ।
ज्ञानी गुरू विवेकी चेला सदा रहे ब्रहमचारी ॥ |
पांच तत्व की बनी नगरिया दास कबीर निहारी ।

(37)
अवधू अंध कूप अन्धियारा । टेक ।
या घट भीतर सात समुन्दर याही में नदी नारा ।
या घट भीतर काशी द्वारिका, याही में ठाकुर द्वारा ॥
या घट भीतर चन्द्र सूर्य है, याही में नौलख तारा ।
कहत “कबीर’ सुनो भाई साधो, याही में सिरजन हारा ॥

(38 )
ज्ञान तलवार है जाके लागि जाय सोई पार । – टेक ॥
या काया के दस दरवाजे बाँध ढाल तलवार ।
भीर पड़ी जब भगे सिपाही लुटन लगे सरदार ॥
मक्खी बैठी शहद पै रे रही पंख लिपटाय ।
हाथन मीडै सिरे धुने रे लालच बुरी बलाय ॥|
तू जो कहै मेरा कुटुम्ब कबीला और कहें परिवार । ५ ।
इकले दम से बीतन लागी कोई न भयौ हे सहाय ॥
हाड़ जले जैसे लाकड़ी और केश जले जैसे घास |
इतनी बनता देख के भये कबीर उदास ॥

(39)
दलाली देके पार हो जो तेरा दलाल । – टेक ॥
वहाँ तो तैने भक्ति कबूली, बाहर आके सब सूधि भूली |
एक हूँ बार बनी ना तोपे, जो तेरा इकरार हो ॥
यहाँ तू सौदा करबै आयौ, ढील करी मन कहाँ लगाया ।
हाकिम तौपे बहुत रिसियाऔ, अबहू तो होशियार हो ॥
औघट घाट नाव नहिं बेड़ा, किस विधि उतरै लश्कर तेरा ।
बिना मल्लाह के पार न हौवे भव सागर की धार हो ॥
सत नाम को भज ले बेड़ा, या विधि उतरे लश्कर तेरा ।
लाल दास कहैं चेत सवेरा, छोड़ कपट जंजार हो।

(40)
मेरे पति के प्राण बचाय, विधाता तुमसे अरज करूँ । टेक ॥
बागडिया ने बागड़ तानी चौसठ फंद लगाय ।
हिरनी कूद बगल भई ठाड़ी हिरना को अटकौ है पाय ॥
हिरनी कहे सुनो भाई बधिका हमें मारि क्यो न लेय ।
पति से पहले हम मर जावें जमम सफल है जाय ॥
हिरना कहै सुनो भाई हिरनी तुम गाफिल मत होय।
तुम तो कूद वनी कूं जाओ राम करे सोई होय |
उखडी खूंटी बंध भये ढीले हिरना को सुलझो पाँव. ।
कहत कबीर सुनो भई साधो जोड़ी मिलायी करतार || |

(41)
जीव तू मत करना फिकरी, जीव तू मत करना फिकरी ।
भाग लिखी सो हो के रहेगी, भली बुरी सगरी ॥
सहस्त्र पुत्र राजा सगर के, तप कीन्हो अकरी ।
थारी गति ने तू ही जाने, आग मिली ना लकड़ी ॥
तप करके हिरना कुश राजा, वर पायो जबरी ।
लौह लकड़ से मरयो नहीं, वो मरयो मौत नखरी ॥
तीन लोक की माता सीता, रावण जाय हरी ।
तब लक्ष्मण ने करी चढ़ाई, लंका गई बिखरी ॥
आठ पहर साहिब को रटना ना करना जिकरी ।
कहत कबीर सुनो भई साधो, रहना वे फिकरी ॥

((42)
विमान अवतरण पर श्रीमती चन्द्रवती साधिनी धारागढ़ी द्वारा प्रस्तुत भजन

दोहा- अम्बर से छाया पड़ी दीखा सजा विमान।
हाथ जोड़कर बन्दगी, करें एकत्रित ध्यान। ।
टेक – अम्बर के मारग आये बाबा सवलदास जी।
गुरु नितानंद बाबा सेवा में रहते आज जी।

रुस्तम खेमू से बोले
सामल कहे नैना खोले
भोपति से तीनों ही बोले
इन बूझौ बात विवेक की बिन बूझे गति नाही जी
राजा ने मुजरौ करे हैं
बादशाह ने सलाम करे हैं
तपसी ने दंडौत करें हैं
भोपति, खेमू रुस्तम, सामल ढाड़े चारौ जी
चारौ कर जोर पुकारें
धरती पै विमान उतारें
हम दोउ कर जोर पुकारें
महरि भई हम पर विमान लै उतरों आप जी
भोजन की करी तैयारी
बाबा ने गिरा उचारी
निगुरे के भोजन न खाई
जिस घर भोजन करें हमारा होय जो साथ जी
चैत सुदी पूरन मासी
मन मगन सभी पुरवासी
शनिवार का दिन था भाई
भोपति घर डेरौ ले लीयौ कियौ भगत परिवार जी
गुरु मंत्र श्रवण में आया
ज्यों सुफल भई है काया
गुरु ज्ञान का दीप जलाया
भोपति कहें पूरे गुरु मिल गये खुल गये भाग जी।
(43)

कुबुधि कू मार सबद घर बैठयो, जब कोई साध कहावेगौ।
पाँचों ही बाटा पाँचों अपरबल, हुकुम पकरि भगावेगौ।।
ईमान की तेग बाघ असर जिरावे,
तो अधर सिंहासन पावेगौ।
विष की नदिया वहे अपरबल, बंदा कोई तिर आवेगौ।।
सत् की नाव धरम को बेड़ो, कोई मति की डण्डी लगावेगौ।
अहू पलिता अति पनजरी है, कोई इल्मी छिरम बुझावेगौ।।
निर्मल नीर बहे निर्मला, तो कोई-कोई साथ नहावेगौ
जैसे मुरई बाबस समन्दर में कोई मोती चुन चुन लावेगौ।।
भगति पदारथ चारयो खूंटी,
कोई जुगति का जोर लगावेगौ।
हस्तिनापुर की पैठ लगत है, तो कोई-कोई नफा कमावेगौ।।
हीरा से व्यौहरि बीरा, कोई कौड़ी काड़ लगावेगौ।
साध संगत में हिल-मिल रहिये,
कोई साँचो बचन सुनावेगौ।।
कहे जी सबलदास इतनी सी साधे तो अमरापुर कूँ पावेगौ।

भावार्थ-सतगुरु बाबा सबलदास साहिब कहते हैं कि पहले कुबुद्धि को मारो अर्थात् पत्थर पूजा. माला जपना, मंदिर दर्शन आदि अज्ञान है जैसे मृग की नाभि में कस्तूरी होती है किन्तु अज्ञानता के कारण जंगल में खोजता फिरता है। गुरु तत्व शब्द ब्रह्म है अर्थात् परमब्रह्म की प्राप्ति के लिये शब्दब्रह्म की साधना करो, तब साध कहलाने के अधिकारी होंगे। पाँचों ही बाटा अर्थात पाँच ज्ञानेन्द्रियों पाँच अपरबल अर्थात् गन्ध, स्वाद, स्पर्श, दृश्य, श्रवण से ग्रसित हैं, अपरमित शक्तिवान हैं, अपने-अपने रस से सहज आकर्षित होती हैं। नियंत्रण करना बहुत कठोर है ”जतन बिन मिरगन खेत उजारे, बुद्धि मेरी कृषि गुरु मेरी बिझुका आखर दोऊ रखवारे” मृग रूपी इन्द्रियों को सतगुरु रूपी बिझुका ही दूर भगा सकता है।
साधक की सत्यनिष्ठा, प्रबुद्धि चेतना ईमान की तेग है और सतगुरु की शक्ति में प्रबल आत्मविश्वास ही उसका बाघ असर है, जिससे अधर सिंहासन अर्थात् मुक्ति का मार्ग मिलता है। संसार रूपी नदी में माया मोह रूपी विष भरा हुआ है, उसमें तीव्रगामी प्रवाह है। इस जल धारा में घुसने वाले की मृत्यु सुनिश्चित है। कोई बिरला साध ही अर्थात् जिसे सतगुरु का सत् ज्ञान मिला हो, वही इसे पार करता है।

(44)

साधू भाई जहाँ से तू आया, सोइ घर खोज्या,
खोज बूझ के चलना है।
साधू भाई यहाँ तू आया. यहाँ ही समाया,
आखिर इस जग में गलना है।
लख चैरासी में भरमत डोले, एक ही टाँक से तुलना है।
साधो भाई कर्म देह सूँ लाग रहयौ है,
आखिर इन सूं टलना है।
वहाँ तो बहुत कठिन घर ऊँचो, ना हाँसी का खेलना है।
साधो भाई मान मगज को काम नहीं है और
जंतरी माह निकरना है।
बुद्धि अचल रहे चलन न पावै, घटत बढ़त कोई तिलना है।
साधो भाई नितानन्द जी में कुदरत बोली,
उनके गुन सूं मिलना है।
सबल गुरु बैठयाँ ही सरै, कोई सांचे साहिब ही सरे
मीर पीर सब मेलो मिलसी, मेले कूं सबल भरे।
तीन भंवर रौ राजा आयौ नौऊ खण्ड ऊपर अमल करै।
झूठ सांच को लेखो लेसी, कोई सांचै ही न्याउ करें।
हस्थी कूं मार गरद में मिलावै, तिनका पै छत्तुर धरै।
सबल दास तुम गुरु ए साहिब, भोपति अरज करै।

(45)
ढील नाहि मेरे प्यारे अब कछु ढील नाहि मेरे प्यारे। टेक।
अमिय की वर्षा होत सदा रे इमरत के पतनारे।
साधन के घर सत्य सबूरी मत उनके न्यारे-न्यारे।
सबके दिल की तुम ही जानो, तुम दिल मालिक हमारे।
मनी मगज कूँ खोज बहाओ संतन काज सम्हारे।
कायम कुँवर जी की सुनों बीनती तुम प्रतिपाल हमारे।
(46)
साहिब धुनि लागि रही पिया मेरा-2 । टेक।
काया नगर में नोहबत वाजे, लियो परम गुरु डेरा
कहबत सुनबत कू बहुतेरो अब दिल पेस किया पिया मेरा।
लाज गई जब कारज संवारे ऊपर कियौ सबेरा।
सांचे पिया संग सरपट खेलो, रोम रोम दिल मेरा।
ऊग्यौ भानु तिमिर सब नास्या, रंग रंग बाज्यौ है तूरा।
कायम कुवर जी की सुनो बीनती पार लगाइदयी बेड़ा।
(47)
मैं मस्तानी रे मेरौ साहिब दिमानो। टेक ।
जित देखू तित चाहौ तेरौ,
तेरी सूरत पे खुरमानी खुरमानी रे।
पिया हमारौ मिलौ है पुरातम,
सुरति सुहागल जानी मैंने जानी रे।
हाजिर रहूँ हुकम के चाकर,
अवगत के मन मानी मन मानी रे।
हमारे गुरु ने अमृत दीयौ,
पीके हो गई मस्त दिवानी दिवानी रे।
कायम कुँवर जी की सुनौ बीनती,
भाव भगति मनमानी मनमानी है।
(48)
बरना राजी करले बरनी, करि सौलह शृंगार (टेक)
सारी धार धर्म की चोली, हया का हार पहन अलबेली
सदा रही पीहर हँस खेली, तेरे पिया मिलन की बार (1)
गुलीबन्द गल पहन ज्ञान को त्यागन कर दे
प्यारी मान को पति की ओर निहार (2)
छल्ला क्षमा करम के कंगना, सुरमो सार धर्म से डरना
रामनाम कूं गहि ले गहना, तेरे पास बसे भरतार (3)
पति के खोज जिगर में पावे, भौ सागर में फिर नहीं आव
छीता कहै परम पद पावें, पति की सेज संभाल (4)
(49)
अब गुरू बोलियो इमरत बानी, साधि लेउ दिल माँहि (टेक)
बन्दगी को है झीनो मारग, आगे झिलमिल झांई
जतन करो तो नाके निकसो, नातर निकसूं नाहीं (1)
मारग यामें नरी आकूंरी, जाय परो मति माही
सहजे सहजे पाँव धरीजे, चाल्यों गुरू सबदाई (2)
बिसरो साद परयो बन्दगी में, गाफिल गोता खाई
दिन-दिन करनी उदय होत है, घिरत अगिन संग मांही (3)
हस्तनापुर की हाटरिया में, सोदा गिरकत नाही
हीरा रो जोहरी बीरा, कोड़ी बनजा कांई (4)
साध वास्ते पत्थर फटियो, परघटियों खंब माँही
भले भरोसे तुम जन रहियो, बार लगाऊ नॉही (5)
कलयुग भंवर- भंवर की नदियाँ, गाफिल गोता खाई
भोपति कूं सबलदास गुरू पूरो मिलियो, राख लियो गह बाँही (6)
(50)
सतनाम अखन्डी है धार जहाँ लौ लागी है रे-टेक ।
माया को फंदन फंस्यौ फँसौ है बहु भाँती है रे ।
यामै कछु है न होत उपाय भमत दिन राती है रे।।1।।
काम क्रोध मद लोभ की झर बाकी है रे ।
या मैं बहि गये पथिक अनेक खबरि नहि ताकी है रे।।2।।
साध संगत मिलि बैठ रच्यौ मत साँचै है रे ।
यामै सतगुरु भये हैं दयाल काटेंगे जम फाँसी है रे।।3।।
अंकुश दै दै रे अरे मन हस्ती है रे।
गुरु ज्ञान की पाखर डारि मिलिंगे अविनाशी है रे।।4।।
गरजें गगन आकाश, प्रेम धुनि लागी है रे ।
जल पी गये नर हरि दास कल्पना भागी है रे ।।5।।
(7)
आनंद के लुटे खजाने भाई सतगुरु के दरवार में – टेक।
सतगुरु के दरवार में भाई बाबा के दरबार में।
क्यों खाक छानता पगले, इस दुनिया की बेगार में।।1।।
धन में सुख ढूँढने वालो, तुम धनवानों से पूछ लो।
उन्हें चैन नहीं मिलता, पलभर भी काज व्यवहार में ।।2।।
कोठी बंगले कारों की भाई, कमी नहीं जिसके पास में।
वे भी यों कहते हैं, हम बड़े दुखी संसार में।।3।।
भाई भतीजे कुटुम्ब कबीला, कितना बड़ा परिवार है।
वो जाये रोज कचहरी, भाई आपस की तकरार में ।।4।।
ना सुख है इस दहशत में, और ना सुख बन में जायके।
गुरु नितानंद समझावें, सुख तो है अगम अपार में।।5।।
(8)
नर तेरा चोला रतन अमोला विरथा खौवे मती ना- टेक।
ऐसी देह मिली है नर की भक्ति करी नहीं ईश्वर की।
सुधि बुधि भूलि गयौ उस घर की नींद में सोवे मती ना ।।1।।
तेरी जो कुछ पिछली करनी होगी सभी तुझी को भरनी ।
यों ही है वेदों में बरनी, दुक्ख में रोवे मती ना ।। 2 ।।
तू क्या ऋषि मुनि फक्कड़ में आ गये विषयों के चक्कर
किश्ती जाय फंसी चक्कर में, तू इसे डुबोबै मती ना ।।3।।
वन्दा बांध कमरि हो तगड़ा, देखा झूठा जग का झगड़ा।
सीधा पड़ा मुक्ति का दगड़ा, तू कायर होवे मती ना ।।4।।
(9)
कैसे भूल गयौ ईश्वर को फंस कर माया जाल में टेक
गर्भवास में सुमिरन कीयौ, बाहर आयके नाम नहि लीयौ।
कछु कह आयौ, कछु कर दीयौ
राम नाम नाय भजौ फंसौ तू कौन बवाल में।।1।।
ज्वानी पन में इश्क कमायौ, पापों से तू नहि घवरायौ।
तेरौ फेरि बुढ़ापौ आयौ, पड़ौ पड़ौ सड़िजाय।
आम ज्यौं सड़ता पाल में।।2।
धन दौलत सब यहीं रह जावै, पाप गठरिया संग में जावै।
अब सोचे ते का है जावे
बनवारी यों कहै काल के फंस रहयौ जाल में ।।3।।
(10)
ऐसे कौन फल तोरे शिवजी की वारी-टेक।
कर स्नान अंगोछी काया, खुदया लगी है अति भारी।
चारौ ओर लक्षमन फिर आये, कही न पायौ रखवारी।।1।।
दो फल तोड़ टका धर दीनौ, तब तक आय गयौ रखवारी।
टूटे फल तो डार लगाओ, नहीं तो युद्ध करौ भारी।।2।।
लक्षमण भइया यौं उठ बोले, सुन लेउ भैया रखवारी।
टूटे फल तो डार लगे नहीं, चाहे युद्ध करौ भारी।।3।।
दोनों योद्धा लड़े बराबर, बारी डिसमिस कर डारी।
हनुमान ने मुष्टक मारी, मुख से निकले बनवारी।।4।।
हनुमान ने टाल बजाइ दई, गढ़ पर्वत पै किलकारी।
चढ़े नादिया शंकर आय गये, संग लिये गौरा नारी।।5।।
हनुमान से लक्षमण भिड़ गये, हितकारी से बनवारी।
तुलसीदास आस रघुवर की, सोरन काया करि डारी।16।।
(11)
ऐसे निर्धन के धन गिरधारी-टेक।
दुर्बल वेष सुदामा ब्राह्मण बोल उठी उनकी नारी।
हरि से मित्र तुम्हारे कहिये, कबहुँ न गये मैं कह हारी।।1।।
तू त्रिया चतुरंग बावरी, कौन पुरुष तेरी मति मारी।
कर्म हमारे लिखो दिलद्दर कहा करेंगे बनवारी।।2।।
शंकरदान दियौ अतिभारी भसमासुर चाहे नारी ।
तीन लोक में फिरे महादेव कहूँ न पायौ मटकधारी।।3।।
पारवती को रूप धारि के आय गये हैं बनवारी।
तुलसीदास आस रघुवर की क्षण में दुख हरौ भारी।।4।।
(12)
गुरु पइयां लागू शब्द लखाइ जइयो होय-टेक
जनम जनम कौ सोबत मनुआ,
जीवन की ज्योति जगाइ जइयो होय।
घर में धरी वस्तु नाहै सूझे नैनन को,
तिमिर मिटाई दइयो होय ।
विष की लहर उठे घट भीतर,
इमरत की बूंद चुहाई जइयो होय।
नदिया गहरी नाव जोझरी,
खेवटिया पार लगाइ जइयो होय।
धर्मदास जी की अरज गुजारू,
जीवन के फंद छुड़ाइ जइयो होय।
(13)
सन्तो सतगुरु अलख लखायौ रे टेक।
परम प्रकाश अखंड ज्ञान घट घट भीतर दर्शायौ रे।
मन बुद्धि वाणी नहि जाने वेद कहत सकुचायौ रे।
अगम अपार अथाह अगोचर नेति नेति श्रुति गायौ रे।
तिल में तेल काठ में अग्नि, दूध में घृत समायौ रे।
शब्द में अर्थ पदारथ पद में स्वर में राग समायौ रे।
बीज माँहि अंकुर तरु शाखा फूल पत्र फल छायौ रे।
जो आतम में है परमातम, गुरु देव दर्शायौ रे ।
अलख पुरुष सतगुरू की किरपा, निज स्वरूप दर्शायौ रे।
(14)
चेतरे गुमानी जग में जन्म ना मिले,
माया संग ना चले-टेक ।
माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी कह गये दास कबीर।
अब भी जाग पड़ा क्यों सोवे, सोने से तेरौ काम न होवै।
इस तन को तू कहाँ तक ढोवे, टाली नाहि टले-माया……
संत समागम हरि कथा, तुलसी दुर्लभ दोय।
सुतदारा और लक्ष्मी, पापी ग्रह भी होय ।
तुलसी जग में आयकर कर लीजै दो काम।
देने को टुकड़ा भला लेने को हरि नाम।
भजन करै तो कछु सुख पावे, धन दौलत तेरे काम न आवै।
साया भी तेरे साथ न जावै, अग्नि बीच जलै-माया………
(15)
एक दिन उड़े ताल के हंस फेरि नहि आयेंगे- टेक।
नरक कुण्ड में उल्टा लटका कर कर याद जियरवा भटका।
हरि कृपा जो होय आपकी तो तर जायेंगे।।1।।
बचपन खेलकूद में खोया, जवानी भरी नींद में खोया।
आया बुढापा देखि दुख से घबरा जायेंगे।।2।।
धन दौलत और माल खजाना, मात पिता सुत वन्धु जमाना।
जिस दिन जावे छोड़ ये रोते रह जायेंगे।।3।।
मांटी में मांटी मिल जावै, ऊपर हरी दूब जम जावे।
आकर बन के पशु वाय चर जावेंगे।।14।।
मुख से बोलो कृष्ण मुरारी, नाव किनारे लगे तुम्हारी।
शंकर कहे शुभ कर्म तुम्हारे साथ ही जायेंगे।।5।।
(16)
पायौ जी मैंने राम रतन धन पायो-टेक।
वस्तु अमोलक दई मेरे सतगुरु किरपा कर अपनायौ।।1।।
जन्म जन्म की पूंजी पाई जग में सभी खुवायौ।।2।।
खरचै न खुटै वाकौ चोर न लूटै, दिन दिन वढ़त सवायौ।।3।।
सब की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयौ।।4।।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर हरस हरस जस गायौ।।5।।
(17)
बंगला अजव बना महाराज जामें नारायण बोले-टेक।
पांच तत्व की ईंट बनाई, तीन गुनन का गारा।
छत्तीस सु की छत बनाई, चेतन है वेचारा।।1।।
इस बंगले के दस दरवाजा, बीच पवन का खभा।
आवत जावत कछु नहिं दीखै ये भी एक अचम्भा।।2।।
इस बंगले में चोपड़ मांड़ी, खेले पांच पचीसा।
कोई तो वाजी हार चलौ है, कोई चला जुग जीता।।3।।
इस बंगले में पातर नाचे, मनवा ताल बजावे।
निरत सुरत का बांध घूंघरू, राग छत्तीसु गावै।।4।।
कहे मछन्दर सुन जती गोरख, जिन ये बंगला गाया।
इस बंगले का गावन हारा, बहुरि जन्म नहि पाया।।5।।
(18)
क्या तन मांजता रे, एक दिन माँटी में मिल जाना-टेक।
माँटी ओढ़न मॉटी विछावन, माँटी का सिरहाना।
माँटी का कलबूत वना है, जिसमें भंवर लुभाना।।1।।
मात पिता का कहना मानौ, हरि से ध्यान लगाना।
सत्य बचन और रही दीनता, सबको सुख पहुंचाना।।2।।
एक दिन दूल्हा बना बराती, बाजै ढोल निशाना।
एक दिन जाय जंगल में डेरा कर सीधा पग जाना।।3।।
हरि की भक्ति कबहुँ नहि भूलौ, जो चाहौ कल्याना।
सबके स्वामी पालन कर्ता, उनका हुकम वजाना।।4।।
(19)
राम नाम सुख दाई भजन करो भाई, ये मेला दो दिन का-टेक।
ये तन है पानी का बुलबुला, लहर चले मिट जाई।
ये तन है सपनों की माया, आंख खुले ढल जाई।
ये तन है कागज की पुड़िया, हवा चले उड़िजाई।
ये तन है माँटी का ढेला, ओस पड़े गलि जाई।
ये तन है जंगल की लकड़ी आग लगे जल जाई।
ये तन है फूलों की माला, धूप लगे मुरझाई।
ये तन है भूतों की नगरी मार लगे भग जाई।
(20)
मेरे सतगुरु दीन दयाल काग से हंस बनाते हैं-टेक।
मेरे सतगुरु दीन दयाल कि सोया मनवा जगाते हैं।
अजब है संतों का दरवार, कि देते जहाँ भक्ति भंडार।
शब्द अनमोल सुनाते हैं कि मन का भरम मिटाते हैं।।1।।
गुरु जी सब को देते ज्ञान, जीव का ईश से लगता ध्यान।
यो अमृत खूब पिलाते हैं कि मन की प्यास बुझाते हैं।।2।।
कर लो गुरु चरणों का ध्यान, सहज प्रकाश हो जागे ज्ञान।
वो अपना ज्ञान लुटाते हैं कि भव से पार लगाते हैं।।3।।
(21)
दुनिया का सहारा क्या लेना,
सतगुरु का सहारा काफी है-टेक
कुछ करने की क्या जरूरत है,
गुरुवर का ईशारा काफी है।।1।।
धन दौलत का क्या करना है,
इन महलों का क्या करना है।
जिन्दगानी चार दिनों की है,
चरणों में गुजारा काफी है।।2।।
माना दुनिया रंगीन तेरी हर चीज बनाई है तुमने।
देखूँ तो क्या-क्या देखू प्रभु गुरुवर का नजारा काफी है।।3।।
वैकुण्ठ नहीं और स्वर्ग नहीं मुझे मुक्ति से क्या करना है।
मैं ध्यान धरूँ और भजन करूँ, गुरुवर का द्वारा काफी है।।4।।
(22)
थोडे दिन को आयौ वन्दे क्यों बांधे बद्दी-टेक।
राम नाम तोहि चहिये जपना, छोड़ जगत की वृथा कल्पना।
राम नाम विन कोई नहि अपना देखी चैहद्दी।।1।।
रावण राजा राज करत है, राजन पर हू दण्ड धरत है।
इन्दर से छिड़काव करत हैं छोड़ गये गद्दी।।2।।
दुर्योधन हो गये अभिमानी, पांडव सेना भये कोई दानी।
धरती पर ना रही निशानी, बीत गई सद्दी।।3।।
लाल दास कहे नेकी करजा बहुत बुरो बद्दी को दरजा।
राम नाम कह पार उतरजा, वैतरणी नद्दी।।4।।
(23)
मैं तो जाऊँगी पिया जी के संग पीहर बहुत रही।
पीहर बस कुकरम करे रे भोगे दुख महान।
विषय वासना में फंसी रे नाय जानी पिया की पहचान।
उमरिया मेरी यूँ ही गई।।1।।
पाँच पुत्र पीहर में जन्मे वो रहे दुन्द मचाय।
छोटी ननद बड़ी छरछन्दी नीचन के घर जाय।
वाऊ ते मैंने बहुत कही।12।।
भ्राता तीन हमारे कहिये जिनमें एकसपूत।
दो बजमारे संग न छोड़े निरखत डोलें मेरो रूप।
काहे के भैया बहन भये ।।3।।
जब मैं संग गई सतगुरू के मिट गये दुख महान।
पीहर कौ तौ करौ पटपरा गावें सुरजन साध।।
भरमना मन की दूर भई।।4।।
(24)
कुटुम्ब तजि सरनि राम तेरी आयौ-टेक
तजि गढ़ लंक, महल और मन्दिर, नाम सुनत उठि धायौ।।1।।
भरी सभा में रावन बैठो चरन प्रहार चलायौ।
मूरख अंध कहन नहि मानै बार बार समझायौ।।2।।
आवत ही लंका पति कीनौ, हरि हंस कंठ लगायौ।
जनम जनम के मीठे वैभव, राम दरस जव पायौ।।3।।
हे रघुनाथ अनाथ के बन्धु दीन जानि अपनायौ।
तुलसीदास रघुवीर सरन तें भगति अभय पद पायौ।।4।।
(25)
ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन।
वो तो गली गली हरि गुण गाने लगी-टेक
महलों में पली बन के जोगन चली,
मीरा रानी दिवानी कहाने लगी।।1।।
कोई रोके नहीं कोई टोके नहीं।

मीरा गोविन्द गोपाल गाने लगी।।2।।
बैठी सन्तों के संग, रंगी मोहन के रंग।
मीरा प्रेमी प्रीतम को मनाने लगी।।3।।
राणा ने विष दिया, मानो अमृत पिया,
मीरा सागर में सरिता समाने लगी।।4।।
दुख लाखों सहे, मुख से गोविन्द कहे।
मीरा गोविन्द गोपाल गाने लगी।।5।।
(26)
नरसी जी ने याद किया था, जहां सुमरा मौजूद खड़ा था।
आकर तुमने भात भरा था, काम काज सब सारा।
मीराबाई सदन कसाई, नाम देव की छान छवाई।
कबीर के घर बालद लाई, आप बने जीवन जारा।
राम नाम की फेरी माला, जय का दूत दूर सब सारा।
अंधकार सब दूर ही टाला, सिरदा में हुआ उजियारा।
अली वक्श का गांव भडावर, जब गोपाल करे न्यौछावर।
लगे स्वर्ग में अपना थावर चरण गहया प्रभु थारा।
(27)
हटजा निद्रा मौत पापनी, मोहे साहिब ने रटवा दे।
कई दिनों का पाप किया जो आज भजन सूं कटवा दे।।1।।
इस काया में अमृत कूआँ भर भर प्याला पीबा दे।।2।।
इस काया में अक्षय वट है, कुबुद्धि वेल ने कटवा दे।।3।।
ज्ञान का गोला शिकरगढ़ लाग्या, काल का बंधन कटवा दे।।4।।
सत की कुंजी सुन्न में लागी, गुप्ती ताला खुलवा दे।।5।।
लादू नाथ जगत जोगी, नींद घंटे तो घटवा दे।।6।।
(28)
साध होय सोतो समझर चालियो जी।
म्हारे आगे की मंजलि करारी है, अये भये भारी जी-टेक।
बीरा दिल दिल घोड़े भई रे चढ़ाई जी म्हारे कायम राजा आवन हार।
नमक पानी रौ साहिब लेखो मांगे जी, त्यारी या मिल होय लौ भाई।
बाप रौ कहयौ बेटा ना माने जी, भाइरौ कहयौ ना भाई।
गुरु कौ बचन चेला निगुरा न साधे जी, उनकी निष्फल जायेगी कमाई।
कालर खेत बीज मत बोओ जी, ये तो निपजा कोई सिराओ।
रूप देख मन कोई रे डुलाओ जी, ये फल चाख्या छताओ।
पांच करोरिया प्रहलाद उबरियो जी, और सात से हरिश्चन्द राजा।
नौ करोरिया दुलीठल पांडु उबरियो, और बारह से बलिराजा।
अनंत करोर गुरु गोरख उबरियो तेतीसौ करोर निधानिया।
दोऊ कर जोर पांडू सहदेव बोल्या तुम समरियो नर नारी।
(29)
शरणागत दुख हरण आपको कहत वेद वाना शरणागत..
दीन बन्धु जगदीश सकल गुरु ईश अलख दुख भंजन महाराज अलख दुख भंजन।
तेरौ भेद न पायो पार दुष्ट मंद गंजन
अतिसै मृदुल स्वभाव भक्ति उरभाव ऋषि गाते है-2
जो जपै आपका नाम पार जाते हैं
रे प्रहलाद नाम उच्चारा जब शरणागत दुख हारा
दुख दिया दुष्ट ने भारा, पर नहि हरि नाम विसारा
जब सुनी भक्त पर भीर विकट भई पीर रूप नरसिंह का प्रकटाना।।1।।
शरणागत दुख हरण…….

लेकर कुटम्ब समाज चले गजराज वारि पीने को
महाराज वारि पीने को वाय संकट की ना खबर रंग भीने को
किया सरवर में गवन ताप कर सबन खुशी मन कीन्हा
इतने में ग्राह ने आय चरण गहि लीना
रे करि कुँजर क्रोध अपारा, गज खीचत बारम्बारा
रे सब गजकुल दिया सहारा परि नेक न होत उबारा
ले चला ग्राह गहि चरण, हुआ जब मरण
किया जब नारायण ध्याना।।2।।
शरणागत दुख हरण…….

दीन बन्धु भगवान सुनो दे कान भगत उर चन्दन
महाराजा भगत उर चन्दन
अब मेरी नाय बसाय काट देउ फन्दन
जब गज की सुन लई टेर करी नाय देर गरूड असवारी
आय गये गजराज समीप भक्त भयहारी
गज खींच पार पै डारौं, लै चक्र ग्राह को मारौ
ऐसो लखि नाम तुम्हारौ, मैंने भी लियौ सहारौ
मैं जपूं आपका नाम सुबह और शाम
देऊ प्रभु ऐसो वरदाना।।3।।
शरणागत दुखहरण……….

जब हारे पान्डव नारि अतिशय कुमार कपट जूए में
गिर गई द्रोपदा नारि विपति कुए में
भरी सभा के बीच दुशासन नीच चीर लगा खींचन
मैं नगनि करूंगा तोय लखूं तेरा तन
जब दुखित नारि पुकारी, सुधि लीजौ कृष्ण मुरारी
बिगड़ेगी लाज हमारी यामें होय हंसी तुम्हारी
जो नाथ विसारी आज संत समाज
होयगा भक्ति अपमाना।।4।।
शरणागत दुखहरण…….

जब सुनी भक्त पर भीर, नैन भरि नीर कृपा करि आये
करि दियो अखय जब चीर दुख निवटाये
जब खींचत खल गयौ हार मान गयौ हार बैठ गयौ थल पै
धन धन रे उनके भाग रहें हरि बल पै
जै जै करि द्रोपदी पुकारी जै कृपा सिन्धु बनवारी
जै बाल मुकन्द मुरारी, जै नारायण गिरधारी
रामचन्द्र कर जोड़ शब्द हुआ घोर रोज भज जै जै भगवाना
शरणागत दुख हरण आपको कहत वेद वाना।
(30)
नर जन्म आमोलक खोया रे-टेक
सुधा समुन्दर के ढिंग आकर दिल का दाग न धोया रे।
जन्म का जाल काल नद भारी, तै क्यों भूल विगोया रे
स्वप्न स्वरूप कनक और कामिनी इन्हीं के सुख में सोया रे।
अंत समय अमृत कहाँ पावै, राम विसर विष बोया रे ।
नितानंद बिन भजन गुमानी सोनर जुगजुग रोया रे।
(31)
ममता तू न गई मेरे मन तें। अरी ममता तू,
पाके केस जनम के साथी लाज गई लोकन ते।
तन थाके कर कंपन लागे, ज्योति गई नैनन ते।।1।।
श्रवन न बचन सुनत काहू के बल गये सब इन्द्रिन ते ।
टूटे दसन बचन नहि आवत, शोभा गई मुखन ते।।2।।
कफ पित बात कंठ पर बैठे सुतहि बुलावत करते ।
भाई बन्धु सब परम पियारे, नारि निकारत घर ते।।3।।
जैसे शशि मण्डल में स्याही छूटै न कोटि यतन ते।
तुलसीदास बलिजाऊ चरन ते लोभ पराये धन ते।।4।।
(32)
सबलपुर नगर बसासी हो सबलपुर नगर बसासी हो।
नेक ही नेक बसें नगर में मोतियन चैक पुरासी हो।
पूरब पच्छिम और उत्तर दखिन में सब देवता उन घर आसी हो।
घरनि दुलीचा आकश वाणी, रानी रूकमणि कलश भरासी हो। वसासी हो।
वोही है उदौ के दास, वो ही है सबलदास वोही हैं परघटे काशी हो।
सबालपुर नगर वसासी हो, सवलपुर नगर।
भोपति साघ हुकम से बोले बाबा पाई है मौज अविनाशी हो।
(33)
आये कायम कुमर खिलारी जी आये कायम कुमर खिलारी जी।
सुधि बुधि सुरति सामदा लाये, वो तो सामा लाए सारी जी।
जुग जुग सतगुरु देह धरि आये, करि आये कौल करारी जी।
पहली नाव पल मांहि उतारी बाबा अबकी नाव क्यों भारी जी।
हुकम करो तो नाव है पार उतारूँ, बाबा जुग जुग जियौ खेवन हारी जी।
धुकर पुकर की कछुना जानू बाबा अवगति आप भन्डारी जी।
कहेंजी दुलीप कायम कृपा कीजै, सब संगति शरण तुम्हारी जी।
आये कायम कुमर खिलाड़ी जी आये कायम कुमर खिलाड़ी जी।
(34)
निंदिया वा घर जैयो री जा घर राम नाम ना होई।
निंदिया…………।
बैठ सभा में मिथ्या बोले, निद्रा करे पराई।
वह घर हमने तुम्हें बताया, जैयो बिना बुलाई।।1।।
के तू जैयो राज दुलारी, कै रसिया रस भोगी।
हमरा पीछा छोड़ बावरी हम तो रमते जोगी।।2।।
ऊँचा मन्दिर चैरे सरवर जहाँ कामिनी चैर दुरावै।
हमारे संग क्या ले बावरी पत्थर पर दुख पावै।।3।।
कहें भरथरी सुन री निंदिया यहाँ न तेरा वासा।
हम तो रहते राम भरोसे गुरु मिलन की आशा।।4।।
निंदिया वा घर जैयो री जा घर राम नाम ना होई।
(35)
हरि नाम भजन लौ लाओगे
लख चैरासी तन बहुतेरे मनुज देह ना पाओगे।
ऐसा समय बहुरि ना पाओ, निर्भय हो गुण गाओगे।
ये संसार चार दिन सपना, चलते वर पछताओगे।
स्वामी गुमानी राम सरीखे हृदयमांहि बसाओगे।
नितानंद हर चेत सबेरा जोत में जोत समाओगे।
(36)
भली भई हम आया अब मैं साहिब सतगुरु पाया धनि पाया हो जी-टेक।।
ख्याल तुम्हारा अगम है, कहो कैसे गम होइ हो।
याहू में एक वस्तु अगोचर, जाने संत सुजान हो।।1।।
वस्तु अगम ऊँची सीढ़ी, इसे जाने नहीं गमार हो।
जो जानै सो कारज होई, तुरत लिये भौपार हो।।2।।
गुरु चेला तो एक है और इनमें अंतर नाइ हो।
देह धरे कौ ख्याल भयौहै याते भयौ गुमान हो।।3।।
ज्ञानी आगे ज्ञान है और मूढ़ कुटिल अज्ञान हो।
पकरि कनपटी धरि फटकारे ज्यों तीतर को बाज हो।।4।।
गढ़ सरवादे किलौ रच्यौ है सत्य भगत विस्तार हो।
नितानंद यों कथिके गावैं ताल बजे एक ताल हो।।5।।
(37)
कौन डारे छरी, मेरे साध पै कौन डारै छरी-टेक
फर्र कोई उड़ि जाय जैसे विरक्ष पैते चिरी।।1।।
दैतन मारि निसाप करसी कला परघटी धनी।।2।।
अरसठ तीरथ चरन साध के रिद्धि सिद्धि हजूर खड़ी।।3।।
साघ भोपति सबद बोल्या महर सतगुरु करी।।4।।

(38)
तेरो कबहुन विरद लजायौ, तेरौ कबहुन विरद लजायौ टेक।
सैन भगत को संसय मैटयौ दरपन आप दिखायौ।
नामदेव को ऊपर कीयौ, हुकम ही भवन फिरायौ ।।1।।
पीपा भगत की प्रतिज्ञा राखी चंदयो जाब बुझायो।
दुर्योधन की मेवा त्यागी साग बिदुर घर खायौ।।2।।
भक्त सुदामा के दिलद्दर मारे, सोने को मंदिर छवायौ।
जहाँ-जहाँ भीर परी साधन पै वहाँ-वहाँ साहिब आयौ।।3।।
दास कबीर की बारी आई कैसी नाम धरायौ।
भोपति साध हुकम सूं बोल्यौ, जिन खोजो तिन पायौ।।4।।
(39)
नर जन्म अमोलक खोया रे,
सुधा समुन्दर के डिंग आकर दिल का दाग न धोया रे।
जम का जाल काल नद भारी तैं क्यों मूल बिगोया रे।
स्वप्न स्वरूप कनक और कामनी इन्हीं में सुख सोया रे।
अंत समय अमृत कहां पाइये, राम बिसर विष वोया रे।
नितानन्द बिन भजन गुमानी, सो नर जुग जुग रोया रे।
(40)
ये गुरु समिरत सारी वाता, सतगुरु समिरत सारी वाता।
सबके दिल की तुमही जानौ, दिल भीतर गम खाना।1।
धरती अम्बर दोनों थरपें, वा दिन कौ है लेख लिखता।2।
हरिनाकुश मारि पहलाद उबारौ सतगुरु अपने हाथा।3।
अमृत कौ दरिया उमड़ौ है, निरमल हुआ नहाता।4।
सातों समुद पलक में पाटयौ, घर-घर गिरवर जाता।5।
सीताऊ की वंदि छुड़ाई छुटत न लागी बारा।6।
कहें भोपति इतवारी इतनौ नौ बारह पाँचै साता।7।
(41)
धन्य गुरु तुम दरशन दीया खुल गये धर्म दुआर।
खुलियो धरम दुआर, धनि धनि दर्शन पाऊँ। टेक।
गोरख जोगी नाद बजायौ, मेलौ जुड़ौ अपार।।1।।
कई आया कैई आवता और कैई भये तैयार।।2।।
कई बाकावत कई टेढ़ावत, कैई छरी बलदार।।3।।
कैई पठन्ता कैई गुनन्ता, आप लीयौ सरकार।।4।।
बिरमा बिशुन महादेव शक्ति राम किशन औतार।।5।।
वींद वींदनी तखत बिराजै, परघट भये औतार।।6।।
भोपति साध सबल जू की सरना सतगुरु के इतवार।।7।।
(42)
धनी तूही गरीबन बाज, सांचै तेरौ विरद सही-टेक।
परमारथ के कारने सतगुरु देह धरी ।।1।।
जग दरिया है अथाह वन्दा की आप बाँह गही।।2।।
नेतसी जी निःकलंक आयौ, भरम की भीति ढही।।3।।
नौऊ राज नई रहैनी, नौऊ खंड तमाम लडी।।4।।
बानी बोल्यौ है भोपति साध, साधों ने त्यारी सरन लही।5।

(43)
तोहि बूझत हूँ सुनि साध कहौ वा देसरी अरे बाता-टेक।
वहाँ राति न दयौस न चंद न सुरज, नहीं धरनि आकाश।
पवन नहीं पानी नहीं, जहाँ अमरापुर वास।।1।।
वहाँ काम न क्रोध न लोभ न मोह, वहाँ नहीं पाप पुन्य छोति।
भर्म कर्म दोनों नहीं, जहाँ जगामग ज्योति।।2।।
वहाँ वेद नहीं ब्रह्मा नहीं कहूँ तोहि समझाय।
देह धरी कौ गम नहीं, वहाँ कौन पहुचै जाय।।3।।
यहाँ पढ़िवौ गुनिवौ सुनिवौ सीखबौ मायारौ व्यौहार।
परमलोक पहुँचै चहै सत अवगत सुनिकाल।।4।।
यहाँ लेनौ देनौ खानों खरचनौं, कायारौ व्यौहार।
सतनाम सबनसे ऊपरै जाहि सुमिरत साहूकार।।5।।
चंदा बिन वहाँ चांदनी, सूरज बिना उजास।
सुरति चढ़ी काया बिना, वहाँ पानी नहीं पियास।।6।।
यहाँ तीन लोकमाया रची, तीरथ व्रत अज्ञान।
कहें भोपति अगम आप हैं, जहाँ अनहद नाद विज्ञान।।7।।
(44)
सुहागिन है गई बा दिनते, मेरे जा दिन से मरे री भरतार।
दुखिया थी मैं पति जीने से पाये दुख अपार।
जा दिन ते मेरे पति मरे री, खूब किये श्रृंगार।।1।।
सास सुसर मेरे मरे जा दिना मिटी सकल तकरार।
देवर जेंठ मरे जा दिन ते सोइ गई पांव पसार।।2।।
पांचो पूत मरे जा दिन से, भई सपूती नार।
बड़े-बड़े सुख पाये मैंने मार सकल परिवार।।3।।
रामकिशन माली कहै कोई श्रोता करो विचार।
ऐसी त्रिया कौन जगत में जाने खायौ सकल संसार।।4।।
(45)
नैया कैसे तो करौगे भव से पार,
गुरु जी मोसे पापी की ।टेक।
जनम जनम माया चक्कर में घूम रहा हर बार।
एक बार भी याद किया ना मैंने तुम्हें करतार।।1।।
झूठे कपटी नीच अन्यायी समझा ना संसार।
माया के चक्कर में पड़कर भूल गये करतार।।2।।
छोटे मोटे पापी तारे तुमने कई हजार।
उन पापिन से मैं हूँ बढ़कर पापिन कौ सरदार।।3।।
चाहे तार दो चाहे डुबा दो तुमको है अधिकार।
राम किशन गुरुदेव भजौ रे जिनके भजे से भयौ पार।।4।।
(46)
बैठ बाग के बीच रंग एक गहरा सा छाया।
इसी बाग के दस दरबाजे, मसलत कर रहे इसमें राजे।
इश्क पेच की बेल देखकर राजा घबराया ।।1।।
पांच पचीस रौस हैं यामें तीन पांच पंछी सुख पावें।
पांचै तोता रहें बाग में सारा फल खाया।। 2।।
जब तक रहे बाग में माली तब तक दिखा देय हरियाली।
बाग छोड़ के चल दिया माली दिखा कुमलाया।।3।।
टूटी डाल सूख गया केरा छीता कहै कौन है तेरा।
एक पलक में लुट गया डेरा पता नहीं पाया।।4।।

(47)
क्या सोया गफलत का मारा, जाग जाग नर जाग रे। टेक
कै जागे कोई रोगी भोगी के जागे कोई चोर रे।
कै जागे कोई संत पियारा लागी हरि से डोर रे ।।
ऐसी जागन जाग पियारे, जैसी ध्रुव प्रहलाद रे।
ध्रुव को मिली अटल की पदवी, प्रहलाद को राज रे।।
हरि सुमरै सो हंस कहाबै, कामी क्रोधी काग करे।
तन कौ चोला भयौ पुरानौ, लगौ दाग पै दाग रे।।
तन सराय है मन है मुसाफिर, कर रहा तू अनुराग रे।
रैन बसेरा करले डेरा, उठ चलना प्रभात रे।।
साधु संग सतगुरु की सेवा पावै अचल सुहाग रे।
नितानंद भज राम गुमानी खुल जाय पूरन भाग रे।
(48)
प्रभू जी मोरे अवगुन चित न धरौ।
समदरशी है नाम तिहारौ, चाहे तो पार करौ।।
एक नदिया एक नार कहावत मैलो नीर भरौ ।
जब मिलकर दोऊ एक वरन भये सुरसरि नाम परौ।।
एक लोहा पूजा में राखत, एक घर वधिक धरौ।
यह अंतर पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ।।
यह माया, भ्रम जाल कहावत सूर श्याम झगरौ।
अबकी बेर मोहि पार उतारौ नहि प्रण जात टरयौ।।
(49)
राखौ बाँह गहे की लाज, धुर निर बाहो जी।
राखौ सरन गहे की लाज धुर निर बाहौ जी।।
तुम तोरे ऊँचा बहुत हो, वन्दा पहुंचे तो आसन दूरि।।1।।
त्यारे दरशन की मोहि तलफ है, त्यारौ नाम है जीवन मूरि।।2।।
भोजल अधिक अपार है, वन्दा के काम क्रोध अहंकार।।3।।
इज्जत तो तुम सूं रहे, धनी यह औसर यही वार।।4।।
सवद सांचा पिंड कच्चा, वन्दा रहे शब्द के मांहि।।5।।
जब जब भीर पड़ी साधन पै, ऊपर की यौहै आय।।6।।
मेहरि तुम्हारी चाहिए रे साहिब, वन्दा तौ ऊपर होय।।7।।
कोटिक दुर्जन का करें, त्यारे नजीकन आवै कोई और।।8।।
बहुत गरीबी आधीन है, साधो भूपति कही सुनाय।।9।।
सरनि जो आयौ धनि सबल की, तेरे नजीकन आवै ताती व्यार।।10।।
(50)
सुने री मैंने निरबल के बल राम।
पिछली साख भरू संतन की आड़े संवारे काम।।
जब लग गज बल अपनी बरत्यौ, नेक सरयौ नहि काम।
निरबल है बल राम पुकारयैे आये आधे नाम।।
द्रुपद सुता निरबल भई ता दिन, तजि आये निज धाम।
दुसासन की भुजा थकित भई, वसन रूप भये स्याम।।
अप बल, तप बल और बाहुबल, चैथो है बल दाम।
सूर किसोर कृपा तें सब बल, हारे कौ हरि नाम।।
(51)
तेरो कबहुन विरद लजायौ-2 । टेक।
सैन भगत को संशय मैटयौ दरपन आप दिखायौ।
नामदेव को ऊपर कीयौ, हुकम ही भवन फिरायौ।।1।।
पीया भगत की प्रतिज्ञा राखी चंदयो जाव बुझायौ।
दुर्योधन की मेवा त्यागी साग विदुर घर खायौ।।2।।
भक्त सुदामा के दिलद्दर मारे, सोने को मंदिर छवायौ।
जहाँ जहाँ भीर परी साधन पै वहाँ वहाँ साहिब आयौ।।3।।
दास कबीर की बारी आई कैसौ नाम धरायौ।
भोपति साध हुकम सू वोल्यौ, जिन खोजो तिन पायौ।।4।।
(52)
समझायौ समझौं नहीं मन हट राखी साधि।
पकड़ कुंवर प्रहलाद को दियौ खम्ब से बाँधि।
दियौ खम्ब से बाँधि दुष्ट ने गर्व महा कीनौ।
देख असुर कौ रूप नाथ ने सिंह स्वरूप धरयौ।
खम्ब जब अजबैगी फाटौ।
नखते फारयौ पेट असुर जब घोंटुन पै डारौ।
गर्व कियौ अर्जुन ने मन में
सोलह सहत्र गोपिका भीलन लूटि लई बन में
गर्व अति बाली ने कीयौ
पंपापुर में जाय मार वाने एक वान दियौ ।
गर्व अति रावण कूँ छायौ।
पंचवटी पै जाय राम की सीता हरि लायौ।
जाने कियौ गरूर मिलै वोही धूर।
अन्त समय मुख में न गई…………….

(53)
तू तौ आय अवधि ने घेरौ, तैने विश्वास विष्णु कौ कीयौ।
तोड़: भलौ न होयगौ तेरौ तू तौ आय अवधि ने घेरौ टेक।
कली: मैने प्रहलाद पढ़ने को भेजौ तोय।
तू तो प्रहलाद पढ़ाने कूँ आयौ मोय।
करै बकवाद जाकौ आज फल दुंगौ तोय जी।
खम्ब की ओट में प्रहलाद ठाड़ौ जोरे हाथ ।
क्यों रे नीच तैने मेरी एक भी न मानी बात।
तोय आज मारूँ तेरी काल आयौ मेरे हाथ।
कली तोड़ः देखुंगौ बल तेरौ…. तू तो आय अवधि ने घेरो।।1।।
लेके प्रहलाद कूँ खम्ब से दीनों बांध।
काढ़ि के खड़ग हरिनाकुश ने लीनों हाथ।
राम को बुलाय जाकौ तेने कियौ विश्वास जी।
फडकत होठ जाके नैन जरें लाल लाल।
तू तो लेत नाम मेरे होत है कलेजा स्याल ।
खड़ग की धार से प्रहलाद आयौ तेरौ काल ।
हाँ राम अब तेरौ-तू तौ आय अवधि ने घेरौ… ।।2।।
मन में उदास राम ढाड़े प्रहलाद पास।
मन में विचार करें भक्त को देख त्रास।
नैनन ते नीर भरे लम्बे लम्बे लेत सांस जी।
ब्रह्मा को रिझाय जाने ऐसौ वर मांग लियौ।
ब्रह्मा के भरोसे मेरे भक्त अपराध कियौ ।
तोडः दुखुंगौ बल तेरौ तू तौ आय अवधि ने घेरौ… । 3 ।
कलीमार बे कूँ आयौ नीच खड़ग लिये अपने हाथ।
काल को झंझोरो और खोटी खोटी करै बात।
कित गयौ राम प्रहलाद छोड़ तेरौ साथ जी।
बोले प्रहलाद पिता राम ही करत काम।
मुझ में और तुममें औ खम्ब में विराजे राम ।
गावत सनेहीराम जाकौ निधि मांट गाँव।
तोड़: हरि चरनन चित धारौतू तौ आय अवधि ने घेरौ। 4।
(54)
काहे रे ! वन खोजन जाई।
सर्व निवासी सदा अलेपा, तोही संग समाई।
पुष्प मध्य ज्यौं बास बसत है, मुकुर मोहिजन छाँई।
तैसे ही हरि बर्से निरंतर घट ही खोजौ भाई।
बाहर भीतर एक ही जानौ, यह गुरु ज्ञान बताई ।
जन नानक बिन आपा चीन्हे मिटे न भ्रम की काई।
(55)
रहन-सहन में पूरे सब विधि सोई साध कहावें ।
साध-धर्म निज विद्या पढ़कर, उत्तम शिक्षा पावें ।।
मादक वस्तु कभी नाहिं भावत, निन्दा कपट भगावें ।
बोलें मधुर सत्य की बानी, क्षमा तोष उर लावें ।।
सम्मति प्रेम भाव सब जन से, उत्तम अर्थ कमावें।
तम ममता को दूर भगावें, नम्रशीलता भावें।।
नारी परधन विष सम त्यागें पूजा प्रेत मिटावें ।
तन मन शुद्ध करें सब अपना, तीर्थ ज्ञान नहावें ।।
पूर्णमासी व्रत उत्तम चर्चा, नाम प्रसाद चढ़ावें।
साध संगत होय एकत्रित अपना गुरु मनावें ।।
धर्म नियम सब धारण करके सब ही आश पुजावें।
शब्द इसी का गायन करके नित्य रसोई खावें।
‘ब्रह्मानन्द‘ साध बलि जाऊँ, युक्ति मुक्ति जब पावें।।
(56)
दलाली देके पार हो जो तेरौ दलाल।
जव तो तैने भगति कबूली बाहर आयके सब सुधि भूली।
एकहूँ बार बनी ना तोपै जो तेरौ इकरार हो। जो तेरौ…
यहाँ तू सौदा करने आयो ढील करी मन कहाँ लगायो।
साहिब तो पै बहुत रिसायो, अबहू तो हुशियार हो।
औघट घाट नाव नहीं बेड़ा का विधि उतरे लश्कर तेरा।
बिना मल्हा नहीं पार होत है भव सागर की धार हो।
राम नाम को भजिले बेड़ा उतर जायगौ लश्कर तेरा।
लालदास कहें चेत सवेरा छोड़ कपट जंजाल हो।
जो तेरो दलाल दलाली दैके पार हो जो तेरो दलाल।
(57)
हर नाम भजन लौ लाओगे।
लख चैरासी तन बहुतेरे मनखा देह न पाओगे।
ऐसा समय बहुत ना पाइये, निर्भय हो गुण गाओगे।
यह संसार चार दिन स्वप्ना चलते वर पछताओगे।
स्वामी गुमानी राम सरीखे हृदय माहिं बसाओगे।
नितानन्द हर चेत सवेरा जोत में जोत समाओगे।
(58)
जहर दियौ हम जानी राना जू ने जहर दियौ हम जानी।
कनक कटोरा में विष घुरवायो तो पी लेउ मीरा रानी।
प्रेम मगन हैकै पीवन लागी, तो है गयौ अमृत पानी।।1।।
राना ने सांप पिटारे में भेजौ, तो मीरा मन मुस्कानी।
प्रेम मगन हैके खोलनलागी तो है गयौ सारंग पानी।।2।।
राना तो मीरा से बोले, परदा करिलेउ रानी।
साधन कौ संग छोड़ देउ तुम, करि राखों पटरानी।।3।।
कोटिक भूप वारुँ सादन पै यों कहे मीरा रानी।
अपने कुल कौ परदा करि लेऊ, मैं अबलाबौरानी।।4।।
दोऊ कर जोरि पढै़ बाई मीरा, गुरु के चरण चितलाई।
मेरे साहिब मेरे मन में बसत हैं, मैं उनके दिल माही।।5।।
आशीर्वाद
(58)
गाजि न सक्कै कोय, जापै त्यारी किरपा है-टेक
परमारथ के कारने कैई ख्याल करता कैई ख्याल करता है।।1।।
काया रूप मनुज कौ धारि, नौऊ खण्ड फिरता भाई नौ खण्ड फिरता है।।2।।
बाबा जिनके है विशवास सोई साधु तिरता भाई सोई साधु तिरता है।।3।।
वानी बोल्यौ है भोपति साध सबल जू की सरना सबल जू की सरना है।।4।।
धनि गाजि न सक्कै कोय, जापै त्यारी किरपा है।।5।।
(59)
अजी जा पर तुम किरपा करो, बापै कोहै दुरजन गाजै जी।
धनि जा पर तुम किरपा करो बापै कोहै दुरजन गाजै जी।।
धरनि धरी आकाश हूं रचायौ, अधर शब्द सू थरप्या जी।
इच्छा सेती चेला कीयौ, अमी अकल जो वनजा जी।
सांचे साहूकार नेतसी, कोई खोटो वनजन वनजो जी।
तुम्हरी सरवर को करे, तुम सुमेरि नख पै थम्या जी।
स्वाफल वन्दो लेखो देसी, पापी कोजी कांप्या जी।
दुल्ली साध महर से बोल्यो, सतगुरु हित से बन ज्या जी।
(60)
जोगी है जा लाल अमर तेरी काया है जायगी, जोगी….
धरि जोगी को वेष फिरौ चहुँ देश मात समझावै
तुम जाओ गुरु के पास ज्ञान बतलावै
तेरे फूक देय वो कान, बतायदे ज्ञान अमर है जावे
तेरो चले जगत में नाम काल नाय खावै
तू मान बचन सुत मेरे सिर मौत खेल रही तेरे
यहाँ लगे काल के डेरे दिन रातकरें तेरे फेरे
सो एक दिन डारै जाल खाय जाय काल पड़ी तेरी काया रह जायगी।।1।।

कह रहौ गोपीचन्द कहा दुख द्वन्द लगाय दयौ तैने
, तेरौ नेंक न पायौ सुख राज कौ मैने,
जा दिन जन्मों कोख लियौ क्यों रोक हन्यौ क्यों न तैने
तू मोय बतावै जोग सीख दई कौन नै
यौं गोपीचन्द समझावै तू का पीछे सुख पावै
तेरे पुत्र नहीं दो चार, जोग धिक्कार मात मेरी कीमत घट जायगी।।2।।

तू बेटा है नादान तोय नाय ज्ञान, खबरि नाय तोकू
ये होनहार बलवान याहि कैसे रोकू
ये गद्दी है निरवंश, चलै नहि वंश खबरि है मोकू ।
तुम बन में जायके तपौ, कटै सब शोकू।
एक दिन आ जाय काल, खाय जाय लाल कुमर तेरी सूरत मिट जायगी ।।3।।

जा दिन जन्मों कुमर, खुशी सब नगर, भूप हरषाये।
मैंने दिये गऊन के दान, बम्ब छुड़वाये।
घर-घर से आय गई नारी सब गावै गीत बिचारी।
मैंने सतिया धरवाये द्वारे, खुश है रही नगरी सारी।
जा दिन जन्मों खुशी, आज मैं दुखी, कर्म की लिखी।
कुमर तेरी कैसे मिट जायगी।।4।।
अब जोगी है जा लाल अमर तेरी काया है जायगी।
(61)
रोय रहौ गोपीचन्द अगारी माता के ठाड़ौ-टेक ।
जा दिन जन्मों मात, ज्ञान की बात, रोक क्यों न लीयौ।
तू लेती जहर मंगाय घोरि क्यों न दीयौ ।
तू लेती हाथ कटार, काटती नार कठिन कर हीयौ।
तोय जो देनों हो जोग, ब्याह क्यों कीयौ।
मेरे घर सोलह सौ रानी मेरे कन्या रोवें क्वारी ।
मोय दोष लगेगौ भारी, तू कबकी दुश्मन महतारी।
तेरे पुत्र नाय दो चार कहै संसार मात तैने वादर फाडारौ।।1।।

अरे कौन पुरुष की रानी, भूप सुनि बानी, भूप सुनि बानी।
यह माया में रहयौ भटकि लाल तेरौ प्राणी।
दिना चारि को रंग, जाय ना संग अन्न और पानी।
तेरौ हंस अकेलो जाय छोडि रजधानी।
ये सपने की सी माया, यामें तू क्यों भरमाया।
तू भूला और भटकाया तेरे हाथ कछू नहि आया।
सो कौन तात तेरी मात, कौन तेरे साथ।
रूप तुम जोगी कौ धारौ।।2।।

दियौ मात ने ज्ञान, बचन लियौ मान, जोग मन भायौ।
यह सत्य वचन मेरी मात मोय समझायौ।
यांे टोढ़ाराम गुन गायौ, सुत माता ने समझायौ।
मैं जाऊँ कौन से देश, मिलें गुरु वेश।
मात मेरी करियो निस्तारौ।।3।।
(62)
चाहे छूट जाय संसार, गुरु तेरा द्वार न छूटे-टेक।
हर दिल की यही पुकार, गुरु तेरा द्वार न छूटे।
दुनिया के प्यार में क्या पाया, हंसते भी रहे रोते भी रहे।
जीवन की कीमत जाने बिना, श्वासों की पूंजी खोते रहे।
किया भव सागर से पार, गुरु तेरे द्वार न छूटे। चाहे….
फूलों से खुशबू क्या मांगे, तेरे प्यार की खुशबू काफी है।
सूरज से रोशनी क्या मांगे तेरे ज्ञान का नूर ही काफी है।
हमें मिला तेरा दीदार-गुरु तेरा द्वार न छूटे।
चाहे नजरों से ये क्या पिला दिया, बिन पिये ही हम तो चूर हुए।
आंचल अपना ही देखा तो आत्मधन से हम भरपूर हुए।
मिला सच्चा हमे आधार, गुरु तेरा द्वार न छूटे चाहे……
अज्ञान के अंधियारे मन में तूने ज्ञान का दीपक जला दिया।
बृद्धों के जीवन को बदला और ज्ञान का अमृत पिला दिया।
दिया जनम मरण से तार-गुरु तेरा द्वार न छूटे। चाहे……
(63)
लगा लो प्रीत सतगुरु से भरम सब टूट जायेंगे- टेक।
ये माया जाल है भारी फंद सब छूट जायेंगे।
सुनो गफलत में मत रहना, जगाता है हमें सतगुरु।
तुम जागो नींद से प्यारे, स्वप्न सब टूट जायेंगे।
लगालो…
जो होनी है सो होनी है जो न होनी नहीं होनी।
जो करता है वही भरता है, कर्म सब छूट जायेंगे।
लगालो..
मैं प्यासा हूँ तुम सावन हो, मैं गागर हूँ तुम सागर हो।
दर्श सतगुरु का पाकर के, नयन ये चैन पायेंगे।
लगालो…
(64)
सत ज्ञान की निर्मल गंगा में तू आकर रोज नहाया कर।
तेरे पाप सभी कट जायेंगे, तू गोते रोज लगाया कर ।
इस पतित पावनी गंगा में, जिसने भी डुबकी मारी है।
उसने अपने अन्तस की फिर, सारी मैल उतारी है।
सत ज्ञान के इस गंगा जल में, जन्मों की प्यास बुझाया कर।
तेरे पाप सभी..
इस ज्ञान की बहती गंगा में, आकर जो नित्य नहाता है।
सब पाप पंथ धुल जाते हैं, वह भी निर्मल हो जाता है।
इस ज्ञान की निर्मल धारा में नित जीवन पथ चमकाया कर।
तेरे पाप सभी..
गंगा निकली गंगोत्री से, सीमित धरती पर बिखरी है।
जो दसों दिशा पावन करती, भगवान के मुख से निकली है।
अवगत की शरण में आकर के, नित अपना ज्ञान बढ़ाया कर।
तेरे पाप सभी…
(65)
है बड़ा अहसान गुरुवर, हम सभी पर आपका।
हमको काबिल कर दिया, उपकार है प्रभु आपका।
जानते थे हम नहीं घट में हमारे है प्रभु।
घर में ही तुमने प्रभु दिया उपकार है प्रभु आपका।
ज्ञान आत्म का न था, हम देह में आसक्त थे।
ज्ञान आत्म का दिया उपकार है प्रभु आपका।
डूब जाते हम सभी माया के गहरे सिंधु में।
डूबने से है बचाया, उपकार है प्रभु आपका।
सुख और दुख में प्रभु जीना सिखाया आपने।
आपने जीवन दिया उपकार है प्रभु आपका ।
अब तो सच यह हो गया, गोविन्द से गुरू है बड़ा।
आपने सच कर दिया, उपकार है प्रभु आपका।
(66)
हे मेरे गुरुदेव करुणा सिंधु करुणा कीजिये।
हूँ अधम आधीन अशरण अब शरण में लीजिये।
खा रहा गोते सदा भव सिन्धु के मजधार में।
अब आसरा है दूसरा कोई न संसार में।
मुझ में है जप तप न साधन और ना कुछ ज्ञान है।
निर्लज्जता है एक बाकी और बस अभिमान है।
पाप बोझे से लदी नैया भंवर में आ रही।
नाथ दौड़ों अब बचालो जल्द डूबी जा रही।
आप भी यदि छोड़ दोगे फिर कहाँ जाऊँगा मैं।
जन्म दुख से नाव कैसे पार कर पाऊँगा मैं।
सब जगह साधो भटक कर ली शरण अब आपकी।
पार करना या न करना ये है मर्जी आपकी।
(67)
मिलता है सच्चा सुख केवल बाबा जी तुम्हारे चरणों में।
यह विनती है पल पल छिन छिन रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
चाहे बैरी सब संसार बने चाहे जीवन मुझ पर भार बने।
चाहे मौत गले का हार बने रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
चाहे अगनी में मुझे जलना हो, चाहे कांटो पै मुझे चलना हो।
चाहे छोड़ के देश निकलना हो रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
चाहे संकट ने मुझे घेरा हो, चाहे चारों ओर अंधेरा हो ।
पर मन नहिं डगमग मेरा हो रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
जिव्हा पर तेरा नाम रहे, तेरा ध्यान सुबह और शाम रहे।
तेरी याद तो आठौ याम रहे रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
(68)
सागर से मोती मिले, अन्धे को ज्योति।
डूबते को मिले किनारा, वैसे मिले सतगुरु सतनाम प्यारा ।।1।।
देखा मैंने एक दिन एक सपना आये हैं गुरु सजन मेरे अंगना।
हरषित मन अचरज भये नैना, टपक रहा है नीर यूँ मैना।
प्यासे को पानी मिले, रंकों को दानी, मरते को जीवन दुबारा ।।2।।
गुरु चरणों का जब रज मोहि मिला, मेरे कर्मों का जैसे मिल गया सिला।
सब रत्नों का रतन मैंने पाया, क्यों पछिताऊँ न हुआ कुछ जाया।
गूँगे को वाणी मिले, बिछड़े को साथी, गिरते को मिले सहारा।।3।।
क्षमा करना गुरु बलि बलि जाऊँ, क्या चढाऊ मैं समझ न पाऊँ
सतगुरु कहै सतनाम को भजले लोभ मोह अहंकार को तज दे।
मोह से मुक्ति मिले, जीवन को युक्ति, धन्य हुआ जीवन हमारा।

(69)
उबारौ कैसे जन प्रहलाद उबारौ।
खम्भ फारि नरसिंहरूप धरि हरिनाकुश हनिडारौ तुमनेजन प्रहलाद उबारौ। कली…
हिरनाकुश ने बुलायौ प्रहलाद आयौ जोड़े हाथ।
गोदी में बैठाय प्रहलाद जी के चूमे हाथ।
कण्ठ से लगाय प्रहलाद जी से पूछी बात जी।
कह प्रहलाद कैसो गुरु ने पढ़ायौ तोय।
मीठी मीठी वाणी बेटा वाँचि के सुनादे मोय
जब लगे पिता कूँ प्यारौ। कैसे जन प्रहलाद।।1।।

बोले प्रहलाद पिता सुनो जी लगा के कान।
जो ही मीठी बानी तुम जानो एक राम नाम।
और खोटी बानी कौ पिता जी कहौ कौन काम जी।
राम नाम निस दिन से तुमनेऊ न पायौ पार।
जाके सुमिरन से पिताजी छूट जात संसार।
तोड़ः सब नामन में न्यारौ… कैसे जन प्रहलाद उबारौ।।2।।

सुन हरि नाम देखो हरिनाकुश ने क्रोध कीयौ।
गोदी से उतार प्रहलाद में ढकेला दीयौ।
भागजा रे दुष्ट तूने कहा वकवाद कियौ जी।
जकड़ी है जंजीर प्रहलाद जी के दीनी डार।
असुर बुलाये तत्काल याकूं डारौ मार।
जीवतो न छोड़ौ याकी देह करौ छार छार जी।
तोड़: याने मेरौ नाम विगाडो…कैसे जन प्रहलाद उवारौ।।3।।

लैके प्रहलाद कूँ पहाड़ पैसे दीनों डार।
टूटी हैजंजीर प्रहलाद के न आईबार।
करते यतनअसुर गये बल हार।
गावत सनेहीराम होलिका में दीनौ डार जी।
तोड़: अब जब लागौ वाय जाड़ौ-कैसे जनप्रहलाद उवारौ।।4।।

बसंत
(70)
मेरो चित ना चले मन भयो अपंग, कहा जइये हो ग्रह लागौ जंग-टेक
जहाँ जई ये जहाँ जल पाखान, पूरि रहे गुरु सकल मांड।
वहाँ जइये जब यहाँ न होय, कहाँ जइये जो ग्रह लाग्यो रंग।।
एक दिना मन भई उमंग, शोभा चंदन चढ़त अंग।
पूजन चली सखी थाय थाय, गुरु देव बताइ दियो आप माह।।
त्रिवेनी ठठि कीयौ नहान, त्रिकुटी संगम धरि लेनु ध्यान।
नहाय धोय जब तिलक कीन, अब ना जानूं मन कहाँ लीन।।
सतगुरु मैं बलिहारी तोय, मेरे सकल विकल भ्रम डारे धोय।
रामानंद भनते ब्रहमा, जिन्ने गुरु के शब्द काटे कोटिक कर्म।।
(71)
तुमरे सन्तन को यही काम हो, तुम परसंद रहो पूरे श्याम हो-टेक
आग तो भगत को ऊंचो मुकाम, भगति बछलि ले पछ भगत को काम
आये सन्तन कौ राख्यौ मान, याते घर घर गया ये तेरौ नाम।।
भाव भगति के कृपाल हो, ना तिरबर धति हारौ गावेगा कौन हो।
आगे सन्तन पै राख्यौ थार हौ, याते भीर पड़े ते हुशियार हो।।
अब राजा तो बृद्ध भयो हो, सहस कान क्यों मूंदि रहे हो।
जागौ अलख तुम पलक खोलो, भगति है तेरी, लज्जा है तोहि।
नितानंद तुम सूँ आधीन, मरो तेरो मिलन पलीन मीन हो।
जुगन जुगन रा खोलो लोलीन, याते पूरन साहिब परवीन हो ।।

ॐ सत अवगत

सतगुरु दरबार राजस्थान राज्य के जिला-करौली की तहसील-टोडाभीम से लगभग 8 कि.मी. की दूरी पर टोडाभीम-गंगापुर जाने वाली सड़क पर गाँव साधपुरा में अरावली पर्वत की तलहटी में अत्यन्त सुन्दर व मनमोहक स्थान है।

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सतगुरु दरबार राजस्थान राज्य के जिला-करौली की तहसील-टोडाभीम से लगभग 8 कि.मी. की दूरी पर टोडाभीम-गंगापुर जाने वाली सड़क पर गाँव साधपुरा में अरावली पर्वत की तलहटी में अत्यन्त सुन्दर व मनमोहक स्थान है।

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