सतनामी पंथ-अर्थात सत का शैला अनगिनत साधू-महात्माओं, ऋषि-मुनियों और वेद-वेदान्तों में पारंगत पडितों ने अपने-अपने ग्यान के अनुसार सृष्टि की रचना का वर्णन किया है। किसी ने ब्रह्मा, विष्णु और महादेव को ही आधार माना तो कोई देवी-देवताओं को ही सर्वस्व कहते हैं। अपने तप और ज्ञान के बल पर जो संत जिस अनुभव तक पहुँचे हैं उन्होंने सिर्फ वहीं तक वर्णन किया है। सृष्टि की रचना का ग्यान या सृष्टि रचियता का भेद तो वेद-पुराण शास्त्र आदि में भी नहीं है। इसलिये सतगुरु साहिब ने पारखी संत-महात्माओं को साक्षात् दर्शन दिये और सम्पूर्ण सत्य का सारा भेद संतों को दिया। जिनके अनुसार सृष्टि की रचना से पूर्व परम-परमेश्वर अवगत् मेहरबान सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने आप में ही समेटे हुये थे। कुछ भी अस्तित्व में नहीं था। ओंकार शब्द भी नहीं था। आकाश, जल, थल, पवन, चंद्र, सूर्य आदि कुछ नहीं थे। न माया थी, न देवी-देवता थे और न जीव वनस्पति थे। अगम पंथ में सृष्टि की रचना और उससे पहले का वर्णन संतों ने निर्माण ग्यान में किया है-
“अवगत् आसन रहे समाई, औंकार भी होता नाहीं। छाया माया होती नाहीं, आप रहे निरन्तर माहीं।।
“सत् अवगत्” व ‘अवगत्’ उस अगम सत्ता का वर्णानात्मक नाम है। वह परमपिता परमात्मा अवगत् मेहरवान आप ही हैं। आप ही अविनाशी हैं, आप ही अजर, अमर, अगम व अगाध हैं। ‘अवगत्’ आप की इच्छा सृष्टि की रचना की हुई तो सर्वप्रथम आपने अपनी इच्छा को ही सतगुरु चेला कहा अर्थात्ध रनि आकाश की इच्छा आनि। इच्छा से चेला किया बिनानी।।
आपकी इच्छा का नाम ही ‘सतगुरु सबलदास’ है। सृष्टि रचने की इच्छा के साथ ही ‘ॐ’ शब्द का प्रार्दुभाव हुआ और पाँच तत्व (जल, थल, पवन, आकाश व अग्नि) तथा तीन गुणों (सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण) से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की रचना कर चौरासी लाख योनियों का विशाल जाल फैलाने का ख्याल किया पुरूष एक किया विचारा, लख चौरासी धागा डाला। पाँच तत्व से गुदडी बीनी, तीन गुनन से ठाड़ी कीनी। तामें जीव ब्रह्म और माया, समरथ ऐसा ख्याल बनाया।”
इस प्रकार सम्पूर्ण जहान की रचना हुई। अवगत् आपने इच्छा से पाँच तत्व की पिंडी बनाई जिसमें से बह्मा, विष्णु, महादेव और शक्ति उत्पन्न हुए। सतगुरु ने इन्हीं चार ब्रह्मों को अगम पंथ बताया और जोगा जोग भगत फुरमाई।
करी जमी असमान बनाया, वे योनी संकट कबहु नहीं आया। थरपी पिंडी लुकाव जब कीना, फुरमान भगत सतगुरू कू दीना। विकसी पिंडी निकसी मांडा, तीन पुरूष और चौथी शक्ति।
इस तरह वे सृष्टि पर पहले चार साध हुये। यह अगम पंथ ही सत् पंथ सत्नाम पंथ है। सृष्टि में केवल सत्नाम पंथ ही इस भौसागर से पार ले जाने वाला है अर्थात् मोक्ष प्रदान करता है। जो लोग सत्नाम की भक्ति व साधना करते हैं उन्हें सतनामी साध कहते हैं। ‘सत् अवगत्’ ऐसा सत्य है जिसकी कोई थाह नहीं वह निरन्तर है वही केवल सत्य है।
“अगम पंथ है गत का गैला, सतगुरु की मेहर से साध चढ़ेला।”
अर्थात् सत्नाम ही गत अर्थात् मोक्ष का रास्ता है। मोक्ष प्राप्त होने पर मनुष्य आवागमन से मुक्त हो जाता है और हमेशा-हमेशा के लिये सतगुरु के चरणों में पहुँच कर आत्मा अमरापुरी में विश्राम कर आनंद प्राप्त करती है, इसलिये संतो, सतगुरुदर्शी साधों ने ‘अवगत्’ नाम को ही सच्चा ध्यान व सुमरिन बताया है।
अवगत् मेहरवान सत्य अगम अगोचर एवं अविनाशी हैं। आपकी लीला अपरम्पार है जिसका किसी ने भेद नहीं पाया। आप ही इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, स्थिति एवं प्रलय करने वाले हैं। आपने अनेकों बार इस सृष्टि की रचना की है और अनेकों बार ही इसे मिटाया है। यह सारा खेल निरन्तर आपके द्वारा ही खेला गया है, खेला जा रहा है और आगे भी निरन्तर खेला जाता रहेगा। आप ही को ज्ञानी नेति-नेति कहते हैं अर्थात् आप ही जानने योग्य हैं। प्रलय काल में यह सृष्टि आप ही में लीन हो जाती है। आप अपरम्पार हैं।
“अवगत् अगम अपार हैं, कोई न पायो पार।। अनेक बार पृथ्वी रची, मेट दई कई बार।।
अवगत् आप युग-युगान्तर से अर्थात् समय से परे हैं। इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की रचना करने वाले अवगत् आप अपनी इच्छा मात्र से सृष्टि की रचना करने और उसे मिटाने की क्रीड़ा करते रहते हैं परन्तु स्वयं पाँच तत्व व तीन गुणों से परे हैं। न वे जनमते हैं और न ही वे मरते हैं अर्थात् जनम-मरण के बंधन से परे हैं। आप न स्थूल हैं न आपकी परछाई होती क्योंकि चंद्र और सूर्य आपके तेज से हैं। आपके हुकम से ही सृष्टि में अवतार होते हैं। प्रकृति स्वयं जड़ मात्र है। परन्तु चेतन्य स्वरूप अवगत् के सानिध्य से ही गतिमान हो जाती है। अवगत् आपकी महिमा बताते हुए संत कहते हैं-
पाँच तत्व से रहे न्यारा, वह मालिक है सिरजन हारा। सिरजन हार जनम नहीं पावें, अन्त समय वाको नहीं आवे। वा करता के बाप न माई, करी इच्छा जिन सृष्टि उपाई। ना वो मरें न काहू मारे, आपने हाथ जुद नहीं टारें। ना वह थूल ना परछाई, सबसे न्यारा सबके माँहीं। सब काहू से न्यारा रहे, सबके मन की उपजी ले है। भले-बुरे के लक्षण जाने, रोम-रोम की वह पहचाने। पाँच तत्व गुन तीन उपाया, इन्हीं से फैली सारी माया। वा अवगत् ने किया पसारा, वाके हुकम होय सब औतारा।