प्रभाती
(1)
जागौ, अवगत जू के लाल,तुम जागौ
तुम जागो, जागे सब कोय, तेतीस करोर के उम्हायौ होय
तुम जागो, सब संत खुशियाल, कृपा करी गुरु दीनदयाल
तुम जागो, चालै व्यौहार, तुम साहिब पूरन प्रतिपाल
अवगत आप कियौ प्रतिपाल, दया करी गुरु दीनदयाल
कायम कुँवर जू की सुनौ अरदास, तेतीस करोर के भयौ खुशियाल।।
(2)
जागत हो दिन रैन बिरैनी, जागत हो दिन रैन बिरैनी
सबके दिल की तुम ही जानों, आनि बुझाई प्यास बिरैनी
हाल हवाल पिया संग राँची, हाल साहिब त्यारे हाथ बिरैनी
पिया तौ हमारौ मिल्यौ है पुरातम, चाहत हौ सुख रैन बिरैनी
कायम कुँवर जू की सुनौ बीनती,अवगत दियौ है सुहाग बिरैनी।।
(3)
प्यारौ है नित प्यारौ है जी म्हारे श्याम सदा नित प्यारौ है
रोम रोम में रमि रह्यौ म्हारे जीवन प्राण अधारा है
दो ‘सत‘ के घर अधर दुलीचा, अनहद कौ झनकारा है
देह धारि के संत उबारे, असुरन पै हंकारौ है
नितानंद जी कूं नित नैम दरसत है,दरस्या सूं यही दिल त्यारौ है।।
(4)
क्या सोवै गाफिल मन मस्ती, जागि जागि नर जाग रे
कुबुद्धि कांचुरी चढ़ी चित्त पै भयौ मनुष से नाग रे
सूझे नाहि साध की संगत, बिना प्रेम बैराग रे
आंधौ चोला भयो धमोला, लग्यौ दाग पै दाग रे
दो दिन की गुजरान बीत गई, चल्यौ जमानौ हारि रे
तन है सराय और मन है मुसाफिर, करतौ है डिग भाग रे
रैन बसेरौ करि भाई डेरौ, चलौ सबेरौ त्यागि रे
सत सुमिरै सोई हंस कहावै, कामी क्रोधी काग रे
बन को भौरा बन में साधौ, चलता है प्रभात रे
नितानंद भज नाम दिवाना, जिनके पूरन भाग रे
सरने आयौ बहुत सुख पायौ, गुरु चरनन चित लागि रे।।
(5)
जालिम जोगी, जागिये, आय संत जगायौ
परकाजी परमारथी बाबा सतगुरु आयौ-टेक
साधौ भाई पांच तत्व गुन तीन में, निसदिन लौ लायौ
जागे से नर ऊवरयौ, सोते जनम गवायौ
साधौ भाई देह धरी जन कारने आय सन्त जगायौ
दुश्मन मारि दफै कियो ऐसौ धर्म चलायौ
साधौ भाई भौ सागर में आयके, बंदी छोड़ि कहायौ
शबद जहाज चढाइके, हंसा लोक पठायौ
साधौ भाई सबलदास सतगुरु धनी, पूरा गुरु पाया
साध भोपति हुकम बोलिये, साहिब त्यारी है छाया।।